मेरे घर नई कामवाली बाई ने काम शुरु किया जो बहुत गरीब थी। साथ में ४ बच्चे-३लड़की, १ लड़का। मैंने पूछा-आज के समय में इतने बच्चे.. कहने लगी कि, बेटे के इंतज़ार में लड़कियां हो गयी। पति ज्यादा कमाता भी नहीं था। जो कमाता था वो दारु में उड़ा देता था,माली हालत बहुत ही खस्ता थी।
उसके साथ एक ११ साल की बच्ची भी आने लगी,जो माँ का काम में हाथ बंटाती थी। मुझे वो लड़की अच्छी लगने लगी, मैं उसे कुछ खाने-पीने को देने लगी। धीरे-धीरे वो मेरे साथ घुल-मिल गई। एक दिन उसकी माँ ने कहा कि,अगर आपको बुरा न लगे तो इसे आपके यहाँ लगा दूँ,मैं दूसरा घर पकड़ लूँगी। कुछ कमाई ज्यादा हो जाएगी और यहाँ ये सुरक्षित भी रहेगी।
मैंने कहा- तुम इसे पढ़ाती क्यों नहीं हो? अभी ये बहुत छोटी है।
उसने कहा-मैं इससे काम ही करवाउंगी,२ पैसे घर तो आएंगे।
मैंने उस बच्ची को रख लिया।उसका नाम आयुषि था। वो हर काम वहुत जल्दी सीखती और करती भी। मैंने उससे पूछा-तुम पढ़ोगी ? उसने कहा -हाँ, पढ़ना तो चाहती हूँ,पर हमारे पास स्कूल के खर्चे उठाने का पैसा नहीं है। तब मैं उसके लिए किताबें ले आई। अब वो काम के बाद मेरे साथ पढ़ती। मुझे भी अच्छा लगता। मैंने सोचा, इस जुलाई में इसको किसी स्कूल में भर्ती करवा दूंगी। मैं उसे अलग से पैसे भी देने लगी। उसे काम करते हुए मेरे पास ५ महीने हो चले थे। घर के लोगों के साथ भी वो घुल-मिल गई थी।हमारे घर आनेवाले रिश्ते दार भी जाते समय उसे पच्चीस- पचास रुपए दे जाते। वो उन पैसों को मेरे ही घर में छुपा कर रखने लगी। मैंने पूछा- ऐसा क्यों कर रही है?
उसने कहा- अपने पिताजी को एक मोबाइल गिफ्ट देना चाहती है।
अब मैं उसे कभी-कभी ज्यादा पैसे दे देती थी,वो भी दिल से पढ़ाई और काम करती। वो गुल्लक में पैसे जोड़ती और एक कॉपी में लिखवाती जाती।धीरे धीरे १७०० रु. हो गए थे ।
उस दिन सुबह वो नहीं आई। ऐसा कभी होता नहीं था,वो बिना बताए छुट्टी नहीं करती थी। दूसरे दिन भी नहीं आई,तो मुझे चिंता हुई। मैं उसके घर गई, तो देखा कि,उसकी झोपड़ी के बाहर कुछ औरतें बैठी हैं। मुझे कुछ गड़बड़ लगी। एक से पूछा पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। इतने में झोपड़ी के अंदर से पुलिस बाहर आई। मुझे घबराहट होने लगी, मैंने पुलिसवाले से जानकारी मांगी तो उसने जो बताया,उसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। दुःख और अवसाद से मेरा मन भर गया,भारी कदमों से घर आई,और उस गुल्लक को देख मेरे आंसू बरबस निकल पड़े। दो दिन पहले आयुषि के मामा उसकी दोनों बहनों और भाई को गांव ले गए थे। ले जाना तो वो आयुषि को भी चाह रहे थे,पर ये काम करती थी इसलिए नहीं ले गए। रात को बाप ने नशे में धुत होकर झगड़ा किया। झगड़ा इतना बढ़ा कि, उसने आयुषि और उसकी मां को बुरी तरह से पीट दिया। छोटी बच्ची उस मार को सह न सकी, और आज अस्पताल में दम तोड़ दिया ।
मैं सोचने लगी कि,अब इस गुल्लक को मैंं इसकी मां को दूं या बाप को..मेरा मन कहीं नहीं लग रहा था ।
#वीना सक्सेना
परिचय : इंदौर से मध्यप्रदेश तक में समाजसेवी के तौर पर श्रीमती वीना सक्सेना की पहचान है। अन्य प्रान्तों में भी आप 20 से अधिक वर्ष से समाजसेवा में सक्रिय हैं। मन के भावों को कलम से अभिव्यक्ति देने में माहिर श्रीमती सक्सेना को कैदी महिलाओं औऱ फुटपाथी बच्चों को संस्कार शिक्षा देने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आपने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है।आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक़ी हैं। आप अच्छी साहित्यकार के साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर टेनिस टूर्नामेंट चैम्पियन भी रही हैं। कायस्थ गौरव और कायस्थ प्रतिभा से अंलकृत वीना सक्सेना के कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुए हैं।
यही समाज तो सोचने को मजबूर करता है