यशपाल निर्मल और  केवल कुमार केवल होंगें 26 क़ो  सम्मानित

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YASHPAL NIRMAL
जम्मू।
राज्य के जाने-माने साहित्यकार, अनुवादक और सांस्कृतिककर्मी एवं साहित्य अकादमी(नई दिल्ली) के राष्ट़्रीय अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित यशपाल निर्मल को अनुवाद के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मान मिल रहा है।  साथ ही केवल कुमार केवल को हास्य व्यंग्य कविता के क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए २६ नवम्बर २०१७ को निर्मला स्मृति साहित्यिक समिति द्वारा हरियाणा के चरखी दादरी में ‘अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य :अनुवाद और शिक्षण’ विषय पर आयोजित राष्ट़्रीय सेमिनार में सम्मानित किया जाएगा। इसमें यशपाल निर्मल अपना शोध-पत्र भी प्रस्तुत करेंगे। सेमिनार में देशभर से साहित्यकार,अनुवादक और बुद्धिजीवी के रुप में  प्रो. पूरनचंद टंडन,डॉ.कृष्णा आचार्य,डॉ. कमल किशोर,घोड़पड़े पद्माकर सहित डॉ. पवना कुमारी आदि शामिल होंगे। समिति के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार मंगलेश ने बताया कि,इस आयोजन का प्रयोजन अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में हिंदी भाषा,अनुवाद और शिक्षण पर चर्चा करना और देशभर के विद्वानों में आपसी संवाद को बढ़ावा देना है।

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खो रही नैतिकता को बचाना बेहद जरुरी 

Sat Nov 25 , 2017
महज हफ्तेभर पुरानी बात है,मेरा भोपाल से इंदौर की ओर आना हो रहा था,रात केकरीब १२ बजे के आस-पास सोनकच्छ के समीप हमारे सामने ही एक ढाबे के पास ट्रकऔर कार में जबरदस्त भिड़ंत हो गई lसमीप के लोग उस घटनास्थल के पास ही जमाहोने शुरू हो गए ,पर आश्चर्य की बात है कि लोग उन घायलों को बाहर निकालने कीबजाए उसका वीडियो बनाने में मशगूल होने लगेlहमने गाड़ी रोकी और उन घायलों कोनिकालने का प्रयास किया| ईश्वर की कृपा से कोई बड़ी हानि नहीं हुई,पर एक बात सदाके लिए दिल में घर कर गई कि आख़िर इस पीढ़ी को क्या हो गया है ? जहाँमानवीयता के आलोक में हमारा पहला कर्तव्य घायलों की मदद होना चाहिए, वहाँनौजवान वीडियो बनाने में मशगूल हो रहे हैं |   आपको क्या लगता है,नैतिक मूल्यों का अचानक गिरना बीसवीं शताब्दी से ही शुरूहुआ ? आपके ज़माने से या आपके किसी बुज़ुर्ग रिश्तेदार या दोस्त के ज़माने से?,बल्कि यह कृत्य होना तो एक सदी पहले ही हो चुका था| सन् १९१४ में जब पहलाविश्वयुद्ध हुआ,तब से नैतिक मूल्यों का अचानक गिरना शुरू हो गया और ऐसा पहलेकिसी भी ज़माने में नहीं देखा गया था। इतिहास के रॉबर्ट वोल ने अपनी किताब१९१४की पीढ़ी (अँग्रेज़ी) में लिखा-`जिन्होंने भी इस युद्ध को देखा था,वे यकीन नहीं करसकते कि अगस्त १९१४ से संसार का रुख ही बदल गया है।` इतिहासकार नॉरमन कैनटर कहते हैं-`हर जगह चाल-चलन के बारे में लोगों केस्तर,जो पहले से ही गिरने शुरू हो गए थे,अब पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। बड़े-बड़े नेताऔर सेना के जनरल अपने अधीन लाखों लोगों के साथ इस तरह पेश आए,मानो वेहलाल किए जाने वाले जानवर हों। जब उन्होंने ही ऐसा किया, तो भला धर्म का यासही-गलत का कौन-सा उसूल आम लोगों को हर दिन एक-दूसरे के साथ जानवरों जैसासलूक करने से रोक सकता है ? पहले विश्वयुद्ध (सन् १९१४-१८)में जिस कदर खून की नदियाँ बहाई गई,उसकी वजह सेइंसान की जान की कीमत एकदम घट गई।` अँग्रेज़ इतिहासकार एच. जी. वैल्स ने अपनी किताब `इतिहास का सारांश` (अँग्रेज़ी) मेंलिखा कि जब से विकासवाद के सिद्धांत को अपनाया गया,तब से `सही मायनों मेंनैतिक मूल्यों का गिरना शुरू हुआ।` क्यों?,क्योंकि कई लोगों का यह मानना था किइंसान बस ऊँची जाति का जानवर है,और कुछ नहीं। वैल्स ने( जो खुद एक विकासवादीथे) सन् १९२० में लिखा-`लोगों ने तय किया कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,ठीकभारत के शिकारी कुत्तों की तरह। इसलिए उन्हें लगता है कि,बड़े-बड़े और ताकतवरलोगों का कमज़ोर और कम दर्जे के लोगों पर धौंस जमाना और उन्हें दबाकर रखनासही है।` भारत में नैतिक मूल्यों का अत्यधिक क्षरण होने का ज़िम्मेदार ‘बच्चों के बस्ते सेनैतिक शिक्षा की किताब के लुप्त होने के बाद से‘ भी माना जा सकता हैl संभावनाओं के असीम संसार में मातृभाषा में होने वाली शिक्षा पद्धति का लोप औरविकास के मार्ग पर चलने वाली नवीन पीढ़ी की स्वयं का संस्कारों भी कहीं-न-कहींइसके लिए ज़िम्मेदार हैंl नैतिकता के मामले में सही मार्गदर्शन पाने के लिए,हम दुनिया के मंदिर-मस्जिद औरचर्चों के पास भी नहीं जा सकते,क्योंकि वे,वे भी अब पहली सदी की पवित्रता की तरहनहीं हैं,जो धर्मी सिद्धांतों पर चलते थे। इसके बजाय,उन्होंने खुद को दुनिया का हिस्साबना लिया और वे उसकी बुराइयों में शामिल हो गए। सचमुच,इस दुनिया में जिस हदतक नैतिक मूल्य गिर गए हैं, उससे साफ पता चलता है कि जल्द-से-जल्द कुछबदलाव किए जाने की सख्त ज़रूरत है। लेकिन कैसा बदलाव ?,यह बदलाव कौन लासकता है और कैसे ? किसी शायर का एक शेर है- `मेरी अखलाख़ में पानी बहुत है, लेकिन मुझे प्यास का एहसास नहीं गेरुए रंग पर मत इतरा ऐ जोगी, यहाँ कपड़ों से तो सन्यास नहींl`   सच भी यही है,मंदिर,मस्जिद और शिवालय अब किसी क्रांति का सूत्रपात नहीं करसकते हैं,क्योंकि वे खुद ही खोखलेपन से जूझ रहे हैंl नैतिकता के बचाव के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं, संभावना है कि उससे कुछपरिवर्तन दिखाई दे,पर उससे भी किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद कम हैl जैसे कि-बाजार आधारित उन्नति को ही सर्वस्व मानने वाली पीढ़ी में संस्कारआधारित जीवनशैली का संवर्धन करनाl -बच्चों की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही हो,ताकि स्कूल से ही पुन: शिक्षा स्तर सुधरेऔर संस्कार जीवित हो पाएl #डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’ परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।