महज हफ्तेभर पुरानी बात है,मेरा भोपाल से इंदौर की ओर आना हो रहा था,रात केकरीब १२ बजे के आस-पास सोनकच्छ के समीप हमारे सामने ही एक ढाबे के पास ट्रकऔर कार में जबरदस्त भिड़ंत हो गई lसमीप के लोग उस घटनास्थल के पास ही जमाहोने शुरू हो गए ,पर आश्चर्य की बात है कि लोग उन घायलों को बाहर निकालने कीबजाए उसका वीडियो बनाने में मशगूल होने लगेlहमने गाड़ी रोकी और उन घायलों कोनिकालने का प्रयास किया| ईश्वर की कृपा से कोई बड़ी हानि नहीं हुई,पर एक बात सदाके लिए दिल में घर कर गई कि आख़िर इस पीढ़ी को क्या हो गया है ? जहाँमानवीयता के आलोक में हमारा पहला कर्तव्य घायलों की मदद होना चाहिए, वहाँनौजवान वीडियो बनाने में मशगूल हो रहे हैं |
आपको क्या लगता है,नैतिक मूल्यों का अचानक गिरना बीसवीं शताब्दी से ही शुरूहुआ ? आपके ज़माने से या आपके किसी बुज़ुर्ग रिश्तेदार या दोस्त के ज़माने से?,बल्कि यह कृत्य होना तो एक सदी पहले ही हो चुका था| सन् १९१४ में जब पहलाविश्वयुद्ध हुआ,तब से नैतिक मूल्यों का अचानक गिरना शुरू हो गया और ऐसा पहलेकिसी भी ज़माने में नहीं देखा गया था। इतिहास के रॉबर्ट वोल ने अपनी किताब१९१४की पीढ़ी (अँग्रेज़ी) में लिखा-`जिन्होंने भी इस युद्ध को देखा था,वे यकीन नहीं करसकते कि अगस्त १९१४ से संसार का रुख ही बदल गया है।`
इतिहासकार नॉरमन कैनटर कहते हैं-`हर जगह चाल-चलन के बारे में लोगों केस्तर,जो पहले से ही गिरने शुरू हो गए थे,अब पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। बड़े-बड़े नेताऔर सेना के जनरल अपने अधीन लाखों लोगों के साथ इस तरह पेश आए,मानो वेहलाल किए जाने वाले जानवर हों। जब उन्होंने ही ऐसा किया, तो भला धर्म का यासही-गलत का कौन-सा उसूल आम लोगों को हर दिन एक-दूसरे के साथ जानवरों जैसासलूक करने से रोक सकता है ?
पहले विश्वयुद्ध (सन् १९१४-१८)में जिस कदर खून की नदियाँ बहाई गई,उसकी वजह सेइंसान की जान की कीमत एकदम घट गई।`
अँग्रेज़ इतिहासकार एच. जी. वैल्स ने अपनी किताब `इतिहास का सारांश` (अँग्रेज़ी) मेंलिखा कि जब से विकासवाद के सिद्धांत को अपनाया गया,तब से `सही मायनों मेंनैतिक मूल्यों का गिरना शुरू हुआ।` क्यों?,क्योंकि कई लोगों का यह मानना था किइंसान बस ऊँची जाति का जानवर है,और कुछ नहीं। वैल्स ने( जो खुद एक विकासवादीथे) सन् १९२० में लिखा-`लोगों ने तय किया कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,ठीकभारत के शिकारी कुत्तों की तरह। इसलिए उन्हें लगता है कि,बड़े-बड़े और ताकतवरलोगों का कमज़ोर और कम दर्जे के लोगों पर धौंस जमाना और उन्हें दबाकर रखनासही है।`
भारत में नैतिक मूल्यों का अत्यधिक क्षरण होने का ज़िम्मेदार ‘बच्चों के बस्ते सेनैतिक शिक्षा की किताब के लुप्त होने के बाद से‘ भी माना जा सकता हैl
संभावनाओं के असीम संसार में मातृभाषा में होने वाली शिक्षा पद्धति का लोप औरविकास के मार्ग पर चलने वाली नवीन पीढ़ी की स्वयं का संस्कारों भी कहीं-न-कहींइसके लिए ज़िम्मेदार हैंl
नैतिकता के मामले में सही मार्गदर्शन पाने के लिए,हम दुनिया के मंदिर-मस्जिद औरचर्चों के पास भी नहीं जा सकते,क्योंकि वे,वे भी अब पहली सदी की पवित्रता की तरहनहीं हैं,जो धर्मी सिद्धांतों पर चलते थे। इसके बजाय,उन्होंने खुद को दुनिया का हिस्साबना लिया और वे उसकी बुराइयों में शामिल हो गए। सचमुच,इस दुनिया में जिस हदतक नैतिक मूल्य गिर गए हैं, उससे साफ पता चलता है कि जल्द-से-जल्द कुछबदलाव किए जाने की सख्त ज़रूरत है। लेकिन कैसा बदलाव ?,यह बदलाव कौन लासकता है और कैसे ?
किसी शायर का एक शेर है-
`मेरी अखलाख़ में पानी बहुत है,
लेकिन मुझे प्यास का एहसास नहीं
गेरुए रंग पर मत इतरा ऐ जोगी,
यहाँ कपड़ों से तो सन्यास नहींl`
सच भी यही है,मंदिर,मस्जिद और शिवालय अब किसी क्रांति का सूत्रपात नहीं करसकते हैं,क्योंकि वे खुद ही खोखलेपन से जूझ रहे हैंl
नैतिकता के बचाव के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं, संभावना है कि उससे कुछपरिवर्तन दिखाई दे,पर उससे भी किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद कम हैl
जैसे कि-बाजार आधारित उन्नति को ही सर्वस्व मानने वाली पीढ़ी में संस्कारआधारित जीवनशैली का संवर्धन करनाl
-बच्चों की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही हो,ताकि स्कूल से ही पुन: शिक्षा स्तर सुधरेऔर संस्कार जीवित हो पाएl
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।