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सीफर से तो शुरु भयो,
पहाड़ जैसा पाय।
सम विषमाभाज अभाज,
संबंधी बन जाय॥
लाभ हानि के अंक में,
जीवन बना गणित।
आयु तो नित घट रही,
अनुभव जुड़ता मीत॥
गुणा-भाग दिन-रात से,
घर कोष्ठ-सा बंद।
शून्य सत्य ही आखरी,
यहि जीवन का अंत॥
मुट्ठी बाँधे आए थे,
हाथ पसारे जाय।
काम क्रोध मद लोभ से
जीवन लिया सजाय।।
ज्ञान दान नित दीजिए,
तज माया अभिमान।
परहित कारज भी करें,
कहते कवि मसान॥
#डाॅ. दशरथ मसानिया
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