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आसमां का कतरा जो
पिघला तो
पिघलकर बून्द बन गया,
और आसमां से बिछुड़कर
धरती से मिल गया..
पर आसमान से धरती तक का
उसका सफ़र बड़ा अजीब था,
वही बिछुड़ा उससे
जो सबसे उसका अज़ीज़ था..
एक नई दुनिया में उसे जाना है
अनजाने रिश्तों की गाँठ में
हमेशा के लिए उसे बंध जाना है,
कभी वो नन्हीं बूँद
बहती हवा के संग बहती,
तो कभी धरती की
हरियाली को ताकती..
पेड़ों के सरसराते पत्ते
उसे अपने पास बुलाते थे,
और मिलन के न जाने
कितने अहसास
जगाते थे..
हरी-हरी नर्म घास का
चहुँ ओर बसेरा था,
उजली-सी धूप में
मुस्कुराता सवेरा था..
धीरे-धीरे वो नन्हीं-सी बूँद,
धरती पर आ रही थी
और यहाँ की सुन्दरता
उसके मन को लुभा रही थी..
अब बून्द ये सोचने लगी
उसे तो मिटना ही है,
अपने-आप में सिमटना ही है
तो क्यों न अपने इस स्वरुप को,
सार्थक कर लूँ
सबके आशीषों से अपना
ये दामन भर लूँ,
मिटकर भी खुद को
मुझे जिन्दा रखना होगा..
फूलों की इन क्यारियों में जाकर
फूलों के इन नन्हें पेड़ों से
लिपटना होगा,
मैं भले ही एक बूँद हूँ
पर मेरा भी अस्तित्व है..
धरती माँ के चरणों में
समर्पित मेरा सर्वस्य है…
समर्पित मेरा सर्वस्य है …॥
#अनुभा मुंजारे’अनुपमा’
परिचय : अनुभा मुंजारे बिना किसी लेखन प्रशिक्षण के लम्बे समय से साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘अनुपमा’,जन्म तारीख २० नवम्बर १९६६ और जन्म स्थान सीहोर(मध्यप्रदेश)है।
शिक्षा में एमए(अर्थशास्त्र)तथा बीएड करने के बाद अभिरुचि साहित्य सृजन, संगीत,समाजसेवा और धार्मिक में बढ़ी ,तो ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की सैर करना भी काफी पसंद है। महादेव को इष्टदेव मानकर ही आप राजनीति भी करती हैं। आपका निवास मध्यप्रदेश के बालाघाट में डॉ.राममनोहर लोहिया चौक है। समझदारी की उम्र से साहित्य सृजन का शौक रखने वाली अनुभा जी को संगीत से भी गहरा लगाव है। बालाघाट नगर पालिका परिषद् की पहली निर्वाचित महिला अध्यक्ष रह(दस वर्ष तक) चुकी हैं तो इनके पति बालाघाट जिले के प्रतिष्ठित राजनेता के रुप में तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। शाला तथा महाविद्यालय में अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर विजेता बनी हैं। नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए नगर विकास के अच्छे कार्य कराने पर राज्य शासन से पुरस्कार के रूप में विदेश यात्रा के लिए चयनित हुई थीं। अभी तक २०० से ज्यादा रचनाओं का सृजन किया है,जिनमें से ५० रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। लेखन की किसी भी विधा का ज्ञान नहीं होने पर आप मन के भावों को शब्दों का स्वरुप देने का प्रयास करती हैं।
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