चितवत चकित चारू चित चंचल,
अकथ अलौकिक अदभुत अंचल
चहुंदिशि चितवत चितवनि चंचल,
घूंघट पट तर दृग-मृग चंचल,
चंचल वारि पवन अति चंचल,
चंचल शुद्ध सरस सरिता-जल
पीपर-पात सदृश मन चंचल,
जीवन भर चंचल दृग-अंचल।
दिव्य रश्मि रथ रवि का चंचल,
चंचल कवि की कविता चंचल
हिरणी जैसी काया चंचल,
ज्यों श्री हरि की माया चंचल।
बचपन चंचल यौवन चंचल,
पल-पल पलटत मौसम चंचल
काल चक्र-सा जीवन चंचल,
धरती के संग उपवन चंचल।
चारु चंद्र की गति अति चंचल,
अहा अप्रतिम अलि गति चंचल
मदन मयंक मनुज मन चंचल,
नृत्य लुभावन कटि तन चंचल।
अचल अटल अम्बर नभ अंचल,
नहि हरि कृपा बिना जग चंचल
चपला चपल चमंकति चंचल,
हरि माया हरिहर से चंचल।
अचल प्राण बिन नर तन चंचल,
अचल ज्ञान बिन नर मन चंचल
प्रेम रहित नर दृष्टि अचंचल,
ईश कृपा बिन सृष्टि अचंचल।
रति बिन पति नहि बसै हृदय तल,
प्रेम वारि बिन हटै न मन मल
प्रेम भक्ति की शक्ति सुमंगल,
प्रेम करे जग जीवन मंगल।
प्रेम से होय सरल मन चंचल,
फूले-फले धरा को अंचल
देहिं अचल तरू सबहिं मधुर फल,
प्रेम से चले सकल जग चंचल॥
#दिलीप कुमार सिंह
परिचय:दिलीप कुमार सिंह का साहित्यिक उपनाम-डीके है। जन्मतिथि १५ दिसबंर १९७९ तथा जन्म स्थान खमनखेरा(उ.प्र.)है। वर्तमान में आपका निवास ग्राम खमनखेरा(पोस्ट रामनगर परीवां) तहसील हैदरगढ़ (जनपद बाराबंकी) उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश राज्य के शहर बाराबंकी(लखनऊ) से रिश्ता रखने वाले श्री सिंह की शिक्षा- परास्नातक(अंग्रेजी साहित्य ) सहित बी.एड.,यू.पी.टी.ई.टी. और विशिष्ट बीटीसी भी है।कार्यक्षेत्र-उत्तर प्रदेश और पेशे से सामाजिक क्षेत्र में शिक्षक हैं। आपकी नज़र में लेखन का उद्देश्य-साहित्य सेवा, जनजागरण व राष्ट्रसेवा है।