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`इंडिया गेट` की `खिचड़ी` चुनाव प्रेरित है। गुजरात और हिमाचल में नेता खिचड़ी पका रहे हैं,उससे प्रतिस्पर्धा करने के लिए इंडिया गेट पर ये खिचड़ी पकाई जा रही है। दिल्ली में खिचड़ी से ज्यादा रायते का महत्व है। चुनावी खिचड़ी की लोकप्रियता देखकर ही इंडिया गेट पर कुछ रसोइयों ने मिलकर आठ सौ किलो खिचड़ी पकाई है। खिचड़ी पकाना बुरा नहीं है,सेहत के लिए खिचड़ी अच्छी है, लेकिन इतनी खिचड़ी में घी कितना होगा? कौन खिचड़ी खाएगा और कौन घी…। चुनावी खिचड़ी में चावल और दाल के स्थान पर जातियां होती हैं। फिर उसे नोट की गड्डियों की धीमी आंच पर पकाया जाता है। चुनाव में जातीय समीकरण यानी जातीय खिचड़ी पकाई जाती है। जैसे गुजरात में और हिमाचल में खिचड़ी पक रही है। किस जाति के कितने वोट हैं,उसमें कौन-सी जाति के `मत` मिलाकर खिचड़ी पकाई जाए,जिससे खिचड़ी का घी यानी सत्ता हजम करने लायक बन सके। खिचड़ी में पड़ा घी यानी सत्ता। खिचड़ी केवल घी की प्राप्ति के लिए पकाई जाती है। सेहत के लिए खिचड़ी तो बीमार लोगों के लिए होती है। अचानक खिचड़ी का पकना किसी बड़ी गड़बड़ी की आशंका व्यक्त करता है। गुजरात और हिमाचल की खिचड़ी का घी कौन खाएगा ? हर कोई मत रूपी घी उंगली डालकर अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहा है।
खिचड़ी की विश्वस्तरीय बढ़ती ख्याति से रायते की नाराजगी जगजाहिर है। रायते का कहना है कि,इंडिया गेट पर चाहे कितनी ही खिचड़ी ही पका लो,चाहे कोई-सा रसोइया बनाने वाला हो,लेकिन जब संसद में खिचड़ी पकेगी और रायते की उपस्थिति में पकेगी तो खिचड़ी हमेशा असुरक्षित रहेगी। खिचड़ी संसद में,विधानसभा में और इनके बाहर भी पकती है। शादी में भी खिचड़ी पकती है,पर असली खिचड़ी पकाने वालों में जीजा और फूफा होते हैं। पहले खिचड़ी पकाते हैं और बाद में रायता फैला देते हैं। खिचड़ी खाने में,रायता फैलाने में आनन्द आता है। खिचड़ी बीमारी का प्रतीक है तो रायता बदतमीजी का। खिचड़ी बहू का प्रतीक है,तो रायता जीजा का।
जरूरी नहीं कि,खिचड़ी पक ही जाए,दो-चार चावल तो कच्चे रह ही जाते हैं। खिचड़ी केवल मूंग की दाल या अरहर की दाल को चावल में मिलाकर ही नहीं बनाई जाती,और भी कई प्रकार से खिचड़ी बनाई जाती है। चुनावी खिचड़ी,सास बहू की खिचड़ी और दलों की खिचड़ी को कई पढ़े-लिखे लोग समीकरण भी कहते हैंl और भी कई प्रकार होते हैं खिचड़ी के। खिचड़ी पेट के लिए लाभदायक और अन्य जगह पक रही खिचड़ी नुकसानदायक होती है।
अब सवाल है कि,खिचड़ी कौन-सी लाभदायक है। मूंग की दाल के छिलके वाली या बिना छिलके की। अरहर की दाल की खिचड़ी तो छिलके वाली बन नहीं सकती। कुछ तो राजनीति में बिना चावल,दाल और घी के खिचड़ी बना देते हैं, जो केवल उनके खाने योग्य होती है।
खिचड़ी घर-घर में,देश में,चुनाव या शादी में खिचड़ी पकती है,लेकिन ये पकने वाली खिचड़ी कितनी फायदेमंद होती है ये रायता फैलने के बाद ही पता चलता है।
#सुनील जैन ‘राही'
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) है| आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl
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बेहतरीन व्यंय