धनिया के साथे धान काटें रोज सँइया जी।
चढते कुआर काहें डाँटे रोज सँइया जी।।
कमर लचकावत खेत्ते जाली लेके हँसिया।
बात कहें साँचे सुनील चौरसिया।।
केहू बोवे गेहूँ , केहू चूसे रस – गनवा।
हरिहर -पिअर खेत देखि गाना गावे मनवा।।
कान्हे पे कुदारी सोभे , हाथे मे गङसिया।
बात कहें साँचे सुनील चौरसिया।।
मरदा मरलसि मउगी के त रोवति गइलि थाने।
दरोगा से कहलसि-रोज राती के न जाने कहवाँ जाने।
गिरफ्तार करे आइलि घूस लेके पुलिसिया।।
बात कहें साँचे सुनील चौरसिया।।
करीबी से गरीबी आजु देखनी ए भाई।
काँपत रहली लइका लेके अर्धनग्न माई।।
हँफर-हँफर हाँफत रहली,आवत रहे खँसिया।
बात कहें साँचे सुनील चौरसिया।।
पइसा रही त समय-समय से खाना मीली ताजा।
राजा तोहके लोगवा कही, मीली खूबे माजा।।
पइसा के अभाव मे मुहें सटी नाहीं बसिया।
बात कहें साँचे सुनील चौरसिया।।
पइसा के चक्कर मे चक्कर काटे सभे दिन-राति।
अब भारत मे जाति-पाति के नइखे कवनो बाति।।
अब बभने के पाँती मे खाने- डोम,चमार,पसिया।
बात कहें साँचे सुनील चौरसिया।।
#सुनील चौरसिया ‘सावन’
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)