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सर्पदंश को तात्कालिक समस्या मानना बेईमानी है,यह दीर्घकालिक भीषण आपदा है। चपेट में आए दिन सैकड़ों लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। खासतौर पर बारिश और खेती-किसानी के समय सर्पदंश की अप्रिय घटनाएं ज्यादा बढ़ती है। ऐसे मौसम में एहतियात बरतने की खासी जरूरत है। वीभत्स,सर्पदंश से ज्यादातर मौतें लापरवाही और दहशत की वजह से होती है। उनमें पीड़ित को अस्पताल ले जाने में देरी,यदि समय पर पहुंच भी जाए,तो वहां दवाई है पर चिकित्सक नहीं,जहां चिकित्सक है,पर दवाई नहीं,कहीं-कहीं तो दोनों नहीं है,से भी तकलीफ हो जाती है। अह्लादित! इस युग में ग्रामीण स्वास्थ केन्द्रों में सर्पदंश के ईलाज की सुविधा और प्रशिक्षित अमले की गैरमौजूदगी ना-फरमानी है। बावजूद जनमानस को इस संक्रमण से सुरक्षित बचाने के निहितार्थ जागरूकता अभियान अदृश्य है। बेरूखी के आलम में अनाप-शनाप गंदगी,तंत्र-मंत्र,झाड़-फूंक और दकियानूसी विचारों से हालात नासूर हो जाते हैं। ऐसे में निहत्थे बैठे रहने से सर्पदंश वश में नहीं आएगाl कमोबेश कारगर उपाय करते हुए हर हाल में अस्पतालों को मजबूत और महकमे,सर्प मित्रों को मुस्तैद करना होगा। पर्यन्त ही विषपान से परलोक गमन थमेगा।
भयावह यह है कि,जानकारी के अभाव में सर्पदंश के शिकार दीगर किसी ईलाज के ही दम तोड़ देते हैं। बेचैनी और अफरा-तफरी के माहौल में सांप जहरीला है या नहीं,जाने बिना ही डर से प्राण-पखेरू उड़ जाते हैंl शायद! डर के मारे दिल का दौरा पड़ जाता होगा। व्यथा जहरीले और गैर जहरीले सर्पदंश की पहचान करना आम आदमी के बूते की बात नहीं है। बतौर विशेषज्ञों के मुताबिक शरीर पर प्रभावी विषैले सर्पदंश से उभरने वाले सामान्य लक्षणों में सर्पदंश के स्थान पर घाव,त्वचा का रंग लाल हो जाना,सूजन तथा तीव्र दर्द का अनुभव होना आदि है। सांस लेने में कठिनाई,दृष्टि क्षमता में कमी या धुंधलापन सहित उल्टी,मुंह से लार और शरीर से अत्यधिक पसीने का निकलना,हाथ-पैरों में झनझनाहट तथा सुन्न होना,प्यास,कमर दर्द,निम्न रक्तचाप के साथ-साथ लालिमा या गहरे भूरे रंग का मूत्र त्यागादि जहरीले दंश की निशानदेही है।
बकौल,पूरे विश्व में ही अनेक दंत कथाओं और पारंपरिक मान्यताओं के चलते सांपों को काफी जहरीला और प्राणघातक जीव माना जाता है,जबकि बहुत कम लोगों को मालूम है कि,सारे सांप जहरीले व हारिकारक नहीं होते हैं। भारत में लगभग पांच-छह सौ किस्म के सांप मिलते हैं, जिनमें बहुत कम सांप ही जहरीले होते हैं। विश्व में मा़त्र चार प्रकार के सांप ही जहरीले होते हैं। इसमें एलापिड्स-कोबरा, किंग कोबरा,करैत, कालामांबा सहित वैपरिड्स-वाइपर, सॉस्केल्ड वाईपर,रसेल वाईपर,पिट वाईपर के साथ ही कोलुब्रिड्स-किंग स्नेक,बुलस्नेक और हाइड्रोफाईडी-समुद्री सांप है। इसी तरह भारत में मुख्यतः करैत,रसेल,वाइपर और सॉस्केल्ड वाइपर,कोबरा जैसे जहरीले सांप हैं।
दुर्भाग्यवश देश में सर्पदंश आज भी कब्रगाह बनी हुई है। आंकड़ों के लिहाज से विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में भारत ही एकमेव ऐसा देश है,जहां सर्पदंश से सर्वाधिक मौतें होती हैं। यहां प्रतिवर्ष २.५ लाख से अधिक सर्पदंश की घटनाओं में ५० हजार लोग बेमौत मर जाते हैं। गैर मामलों का कोई अता-पता नहीं। मद्देनजर चिकित्सकों की मानें तो,अंधविश्वास,सर्प मंत्र,झाड़-फूंक,चूसने तथा जड़ी-बूटियों से सांप का जहर नहीं निकलता,क्योंकि सर्प का विष सीधे खून की मार्फ़त हृदय और मष्तिष्क पर प्रभाव डालता है,इसलिए सर्पदंश का प्राथमिक उपचार अविलंब करना जरूरी है। हां,हो सके तो दंशस्थान के कुछ ऊपर और नीचे रस्सी या कपड़े से बांध देना चाहिए, ताकि जहर सारे शरीर में न फैल सके। इसके पश्चात बिना रुके अस्पताल जाएं और एंटी स्नैक वीनम लगवाकर जान बचाएं। सनद रहे कि,सर्प भी इस पारिस्थितिकी के अभिन्न अंग हैं, यथा इन्हें बेवजह परेशान कर आफत न मोल लें। बजाय जन-चेतना,सुरक्षा,सावधानी और उचित ईलाज से मर्ज को जड़मूल करने में सहयोगी बनें,इसमें हम सबकी भलाई निहित है।
#हेमेन्द्र क्षीरसागर
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