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(रस-श्रृंगार रस (वियोग श्रृंगार),वियोग श्रृंगार का पहला प्रकार-पूर्वराग,आलंबना -कृष्ण,उद्दीपन-एकांत,ऋतु,अनुभा व- निष्प्राण और संचारी भाव-जड़ता है)
विरह हृदय पर नयन पसारो॥
श्यामल अंबर वृंदावन है,आओ कुंज विहारो।
कंचन तन अरु मन मधुवन है,आकर मोहिं निहारो,
सकल जगत निष्प्राण हुआ ज्यों,उर जड़ता को हारो।
राधा हूँ, पिय अंतर्मन की, इव दुख बोझ उतारो।
मधुर मिलन का मैं हूँ प्यासा,अब तो आप पधारो॥
#श्रीमन्नारायण चारी ‘विराट’
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