निश्छल प्रेम

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arvind
प्रेम, प्रेम तो सब रटें,
प्रेम न करे कोय;
एक बार जो प्रेम करे,
तो प्रेम-प्रेम ही होय।
जो बांटोगे वही मिलेगा,
ये है जग की रीत;
क्यों न प्रेम को सब बांटें,
बढ़ जावेगी प्रीत।
प्रेम अगर निश्छल करो,
निश्छल प्रेम ही पाओ;
छल वाले प्रेम में तो,
खुद भी छल-छल जाओ॥

                                                             #अरविंद ताम्रकार ‘सपना’

परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की  शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।

matruadmin

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One thought on “निश्छल प्रेम

  1. बहुत ही सुंदर अभिव्यति

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