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चेहरे पर झूठी मुस्कान,ख़ंजर छुपाए बैठा हूँ।
मैं आज का इंसान हूँ,घात लगाए बैठा हूँ॥
सम्भलना,सम्भलना मुझसे तुम्हारी जिम्मेदारी है।
मैं तो अखबार में भी क़त्ल छुपाए बैठा हूँ॥
मसला कुछ यूँ है आजकल मेरे वतन भारत में।
मैं भारत को हिन्दुस्तान बनाए बैठा हूँ॥
कुछ लोग खफा होंगें, कुछ रुठेंगे जाएंगे मुझसे,
बिडम्बना ये है कि मैं ‘इंसानियत’ को जाति बनाए बैठा हूँ॥
गाँवों में जिन्दा हैं अभी भी कुछ रिश्ते, चाचा-चाची,ताऊ-ताई,मौसा-मौसी,भाई-बहिना।
आज बड़े शहर में,सब रिश्तों को कुर्बान किये बैठा हूँ॥
मैं बड़ा हो गया हूँ केवल अपनी नजर में सबसे दूर।
घमंड में चूर होकर अपनों को भुलाए बैठा हूँ॥
जीवन के अंतिम समय,याद आएंगे ‘विष्णु’,वो खेत,वो खलिहान,वो टेढ़ी मेड़ और गांव के किसान,
जिंनसे कभी लड़ते थे सुबह-शाम,उन यारों को भुलाए बैठा हूँ॥
#डॉ. विष्णुकान्त अशोक
परिचय: डॉ. विष्णुकान्त अशोक की जन्मतिथि-१० जुलाई १९७० एवं जन्म स्थान-हाथरस(उ.प्र.)है। आपका निवास उत्तर प्रदेश के शहर-हाथरस में ही है। शिक्षा-एमए के साथ ही पीएचडी (अंग्रेजी) है,जबकि कार्यक्षेत्र-वाराणसी, देवरिया,हाथरस है। सामाजिक क्षेत्र-जनपद हाथरस है। आपने मिश्रित विधा अपनाई हुई है। नई दिल्ली से एक प्रकाशन ने आपकी किताब छापी है। आपके लेखन का उद्देश्य-देशभक्ति की भावना जिंदा रखना,सामाजिक भेदभाव पर प्रहार,जातिवाद का जहर कम करना,इंसानियत का प्रसार,स्वस्थ्य मनोरंजन, नई सोच पैदा करना,चीजों- घटनाओं को सही और अलग नजरिए से देखना और दिखाना है। साथ ही भारत को सबसे अच्छा और सबसे श्रेष्ठ राष्ट्र बनाने में प्रयास करना है।
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