मन में बसंत लिए,प्रेम की तरंग लिए,
रोम-रोम देह का,श्रृंगार गीत गा रहा।
हिय में छुपा हुआ था,बेसुध मन मयूर,
नृत्य करने तीव्रता से,अब मचल रहा।
कोयल भी गाने लगी,बाग़ महकाने लगी,
आम भी वृक्ष में आने को है,ललचा रहा।
उड़ रही अब धूल,खिल गए टेसू फूल,
रंगों का त्यौहार,समीप है आ रहा।
धवल चुनर,भिगाना नहीं कान्हा तुम,
अंग अब रंग की,सुंगंध से बहका रहा।
लाल हरा पीला,गुलाबी श्वेत नीला नहीं,
श्याम रंग मन को,दीवाना है बना रहा।
रोली अबीर गुलाल से है,गाल लाल,
सजन से ह्रदय,मिलन को लज़ा रहा।
मैं दीवानी श्यामजूं की,राधारानी लगती हूँ,
हर हुरियारे में,कान्हा नज़र आ रहा।
#शशांक दुबे
लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश) में पदस्थ हैं| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय हैं |