शिक्षा में सुधार

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manila kumari

सबके मन में “शिक्षा में सुधार कैसे हो ? “यह विचार रहता है। नेता, मीडिया, पदाधिकारी से लेकर आम आदमी हर कोई इसमें सुधार हेतु प्रयासरत हैं। सब अपनी तरफ से किये गये प्रयासों की सराहना चाहते हैं, पर किसी को वास्तव में शिक्षा में सुधार हो रहा है या नहीं उससे कोई लेना देना नहीं होता है। जब बोर्ड का परिणाम आता है तब हाय तौबा मचाई जाती है और दोषी को दण्डित करने की कवायद शुरू हो जाती है। यहाँ भी जो सबसे कमजोर होता है, उसी पर दोष मढ़कर सब दोष मुक्त हो जाते हैं।

जो निरीह है, उसकी कहीं सुनवाई नहीं होती कि उसकी क्या समस्या है। इसे मीडिया भी जोर शोर से प्रचारित करती है ताकि वह भी वाहवाही की बहती गंगा में हाथ धो सके। पर क्या इस तरह से शिक्षा में सुधार हो सकता है या हुआ है ? यक्ष प्रश्न अब भी बरकरार  है।

तब शिक्षा में कैसे सुधार हो ? सर्वप्रथम हमारी इस मानसिकता में सुधार लाना होगा कि बोर्ड का परिणाम खराब है, तो उसमें कोई एक दोषी है। बोर्ड का परिणाम खराब होने के दोषी हम सब हैं। इस भावना को विकसित करना होगा।

2 दोष मानने के उपरांत हम सबको अपने स्तर पर प्रयास करना होगा। जैसे – नेता है, तो वह ऐसा क्या करे कि शिक्षा में सुधार हो?
नेता या मंत्री अपने स्तर पर कम से कम एक सरकारी स्कूल जो ग्रामीण क्षेत्र में है ,को गोद लेकर उसका विकास करते हुए अपनी सहभागिता दिखा

धिकारी जब नियम बनाते हैं, तो ac कमरे में बैठ कुछ चापलूसों की राय लेकर ही नियम बनाते हैं। कारण समय का अभाव,अत्यधिक कार्य का दबाव  या “रुट लेवल” तक न पहुँच पाना l  इस  स्थिति  में जिन्हें वो जानते हैं या जो प्रायः उनके आसपास दिखते हैं, उन्हीं से सुझाव लेकर अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं। ऐसे तो कभी भी शिक्षा में सुधार सम्भव नहीं क्योंकि यह समस्या का समाधान नहीं केवल रिपोर्ट  निर्माण है ।वे यदि चापलूसों के खोल से बाहर निकल कर कभी वास्तविकता से अवगत होंगे तभी सही नीति बन पायेगी।इसके लिए उन्हें अपनी पहचान छुपाते हुए चुपचाप किसी सुदूर ग्रामीण विद्यालय में जाकर रुट लेवल पर योजना बनानी होगी।

शिक्षा में नवप्रयोग का प्रभाव तुरंत नहीं दिखता है, उसमें समय लगता है l समय भी एक -दो माह नहीं कम  से कम दो से तीन वर्ष l इसलिए कोई भी नवप्रयोग या नीति लागू करने से पहले सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की परिस्थितियों से अवगत होने के उपरांत ही नवनीति को लागू करना चाहिए l जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं, नए नियम के भी दो पक्ष अवश्य होंगे, इस बात को भी स्वीकार करते हुए ही नियम लागू करने चाहिए l पर प्रायः यह देखा गया है कि नियम के एक पक्ष को देख कर ही उसे लागू कर दिया गया है, तो स्वाभाविक ही है कि उसका परिणाम सकारात्मक के बजाय नकारात्मक आए !

हम आम लोगों को स्वयं अपनी गलती स्वीकार करनी होगी और अपने बच्चों को स्वाध्ययन के लिए प्रेरित करना होगा। हमारे पास अपना एक या दो बच्चा होता है, पर शिक्षक या संस्था के पास 100 या उससे अधिक बच्चे l जब हम अपने एक या दो बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाते हैं तो हमें दूसरे पर ऊँगली उठाने का कोई हक नहीं बनता है l

मीडिया को केवल एक की गलती दिखाने से बाज़ आना होगा। यदि गलती दिखाना ही है तो एक दिन में अंदर की बात समझ नहीं आएगी , वहाँ रहते हुए महीने भर की कार्य पद्धति की समीक्षा करते हुए सबके दोषों को उजागर करना होगा।

यह काम बहुत आसान होता है की दूसरों की गलती दिखाकर वाहवाही लूटी जाये।छोटी मछली फांसना बहुत आसान है बड़ी मछली फाँसों तो जाने। जो वास्तव में शिक्षा के स्तर में गिरावट के कारण हैं, उस पर प्रकाश डालना महत कार्य है l इस कार्य के लिए गहन मंथन की आवश्यकता है l जब अपने पर कोई ऊँगली उठे तो दूसरों की हज़ार गलतियाँ गिनवा कर हम अपनी गलती छुपा नहीं सकते हैं l

हम सबको एकजुट होकर प्रयास करना होगा ताकि बच्चों में सही संस्कार डाली जा सके और उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सके l सही मायने में बच्चों अर्थात भावी पीढ़ी को शिक्षित करना उतना आसान काम नहीं है, जिसे हम केवल शिक्षक पर थोप देते हैं और जब रिजल्ट खराब होता है, तो सारा दोष शिक्षक वर्ग पर मढ़ कर अपने दायित्व से इतिश्री कर लेते हैं l इस गंभीर मुद्दे  पर समाज, शिक्षाविद, सरकार, मीडिया सबको गहन चिंतन और मनन करके इसका हल निकलना होगा l जब तक हम अपनी गलती नहीं मानेंगे तब तक सुधार की गुंज़ाइश भी नहीं होगी, इसलिए ईमानदारी से हमें अपनी गलती माननी होगी और केवल दूसरों पर दोषारोपण से बचना होगा, तभी सही मायने में शिक्षा में सुधार संभव होगा

#डॉ मनीला कुमारी

परिचय : झारखंड के सरायकेला खरसावाँ जिले के अंतर्गत हथियाडीह में 14 नवम्बर 1978 ई0 में जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुआ। उच्च शिक्षा डी बी एम एस कदमा गर्ल्स हाई स्कूल से प्राप्त किया और विश्वविद्यालयी शिक्षा जमशेदपुर वीमेन्स कॉलेज से प्राप्त किया। कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्र प्रस्तुत किया ।ज्वलंत समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया विविध पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। प्रतिलिपि और नारायणी साहित्यिक संस्था से जुड़ी हुई हैं। हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला की जानकारी रखने वाली सम्प्रति ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में पदस्थापित हैं और वहाँ के छात्र -छात्राओं को हिन्दी की महत्ता और रोजगारोन्मुखता से परिचित कराते हुए हिन्दी के सामर्थ्य से अवगत कराने का कार्य कर रहीं हैं।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।