खो गए विश्व गो-शाला

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gopal madhu
खो गए विश्व गो-शाला, गो-मना हो के गोपाला;
खोजते रहते ब्रज ग्वाला, कहाँ मिल पा रहे लाला।
तके गोष्पद बिपद विहरन, रमण कर राधिका अनहद;
चली मूँदे नयन चित-वन, कहाँ चितवन लखत त्रिभुवन।
कभी मुरली सुने मधुवन, किए क़द छोटा वेलन तृण;
खोज करती कभी मृदु सुर; साधना शोध में सध सुध।
शयन जब तब अधर थिरकन, तरन्नुम रह गई लय धुन,
अजब आलोक में दोलन, शक्ति आसक्ति संचालन।
चले ले ललित लय गोड़न, खोलने जैसे कोई ताला;
मिल गए ‘मधु’ को नंद-लाला, प्राण ज्यों सौंपे तप ज्वाला।

                                                                  #गोपाल बघेल ‘मधु’

परिचय : ५००० से अधिक मौलिक रचनाएँ रच चुके गोपाल बघेल ‘मधु’ सिर्फ हिन्दी ही नहीं,ब्रज,बंगला,उर्दू और अंग्रेजी भाषा में भी लिखते हैं। आप अखिल विश्व हिन्दी समिति के अध्यक्ष होने के साथ ही हिन्दी साहित्य सभा से भी जुड़े हुए हैं। आप टोरोंटो (ओंटारियो,कनाडा)में बसे हुए हैं। जुलाई १९४७ में मथुरा(उ.प्र.)में जन्म लेने वाले श्री बघेल एनआईटी (दुर्गापुर,प.बंगाल) से १९७० में यान्त्रिक अभियान्त्रिकी व एआईएमए के साथ ही दिल्ली से १९७८ में प्रबन्ध शास्त्र आदि कर चुके हैं। भारतीय काग़ज़ उद्योग में २७ वर्ष तक अभियंत्रण,प्रबंधन,महाप्रबंधन व व्यापार करने के बाद टोरोंटो में १९९७ से रहते हुए आयात-निर्यात में सक्रिय हैं। लेखनी अधिकतर आध्यात्मिक प्रबन्ध आदि पर चलती है। प्रमुख रचनाओं में-आनन्द अनुभूति, मधुगीति,आनन्द गंगा व आनन्द सुधा आदि विशहै। नारायणी साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)और चेतना साहित्य सभा (लखनऊ)के अतिरिक्त अनेक संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं।

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