घाव ढाल बन रहे
. स्वप्न साज बह गये।
. पीत वर्ण पात हो
. चूमते विरह गये।।
काल के कपाल पर
. बैठ गीत रच रहा
. प्राण के अकाल कवि
. सुकाल को पच रहा
. सुन विनाश गान खग
रोम की तरह गये।
पीत वर्ण……….।।
फूल शूल से लगे
मीत भयभीत छंद
रुक गये विकास नव
. छा रहा प्राण द्वंद
. अश्रु बाढ़ चढ़ रही
डूब बहु ग्राह गये।
पीत……………।।
चाह घनश्याम मन
. रात श्याम आ गई
. नींद एक स्वप्न था
. खैर नींद भा गई
. श्वाँस छोड़ते बदन
वात से जिबह हुये।
पीत……………..।।
जीवनी विवाद मय
जन्म मर्त्य कामना
.देख रहे भीत बन
. काल चाल सामना
. शेर से दहाड़ हम
छोड़ कर जिरह गये।
पीत ……………….।।
देश देश की खबर
. काग चील हँस रहे
. मौन कोकिला हुई
. काल ब्याल डस रहे
. लाश लापता हुई
मेघ शोक कह गये।
पीत…………….।।
शव सचित्र घूमते
. मौन होड़ पंथ पर
. गड़ रही निगाह अब
. भारतीय ग्रंथ पर
. शोध के बँबूल सब
सिंधु की सतह गये।
पीत……………..।।
शून्य पंथ ताकते
. रीत प्रीत रो पड़ी
. मानवीय भावना
. संग रोग हथकड़ी
. दूरियाँ सहेज ली
धूप ले सुबह गये।
पीत………….।।
खेत सब पके थके
. ले किसान की दवा
. तीर विष बुझे लिए
. मौन साधती हवा
. होंठ सूख वृक्ष के
अश्रु मीत बह गये।
पीत…………….।।
ताण्डवी मशान से
. मजार है मिल रही
. कब्र की कतार में
. मौत वस्त्र सिल रही
. कफन की दुकान के
गुबार हम सह गये।
पीत……………..।।
काट वृक्ष भूमि तन
. स्वास्थ्य मूल खो रहे
. सिंधु नीर सर नदी
. जगत गंद ढो रहे
. काल की मजार ले
फैसले सुलह नये।
पीत……………।।
देव स्वर्ग में बसे
. काल दूत डोलते
. रक्त बीज बो रहे
. गरल गंध घोलते
. नव विषाणु फौज के
खिल रहे कलह नये
पीत………………।।
विहंग निज पर कुतर
. प्रेम पत्र ला रहे
. पेड़ फूल डालियाँ
. गिरि शिखर हिला रहे
. सिंधु आँच दे रहे
और दम्भ दह गये।
पीत……………. ।।
कामिनी सजा रही
. गात मौत मीत के
ढूँढ रही मौत शव
. गीत संग रीत के
. प्रीत की उमंग में
छंद दंग रह गये।
पीत…………..।।
स्वदेश में प्रवास से
. जागरूक भारती
. शूल बन फूल संग
. यत्न कर्म पालती
. हार गई मौत तब
देख हम फतह हुये।
पीत………………।।
चल दिए छंद छोड़
. पीढ़ियाँ सहेज कर
. सह लिए घाव ताप
. सच से परहेज कर
. आज नींद सी खुली
लोक पुण्य ग्रह गये।
पीत……………..।।
बीत गये रोग सब
सोच प्राण हँस रहा
भव के अकाल भूल
. मोह मान फँस रहा
. जग रहा अहम भाव
वयम् अन्त गृह गये।
पीत…………………।।
ताक रहे विश्व जन
. विहँस रही भारती
. विश्व जीत देश मम
. देह मान आरती
. सर्व लोक मान्यतम्
विश्व गुरू कह गये।
पीत… वर्ण.. पात..हो
चूमते… विरह…गये।।
नाम–बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः