Read Time1 Minute, 19 Second
दीनों इमां के वास्ते लाई गई ग़ज़ल,
लैला के इश्क़ में भी डुबाई गई ग़ज़ल।
वादों से जब अवाम का था पेट न भरा,
रोटी के लिए खूँ से लिखाई गई ग़ज़ल।
मादरे वतन पे जब भी आंच आई तो,
गंगो जमन की राग में गाई गई ग़ज़ल।
इंसानियत का वास्ता इंसान से रहे,
रामो रहीम ईशा में पाई गई ग़ज़ल।
जीस्तो सुखन में आई जब भी वस्ल की थी शब्,
असलद में बैठ कर भी सुनाई गई ग़ज़ल।
हर जन्म में इस मुल्क के मैं काम आ सकूँ,
जज़्बे में जां बाजी के जगाई गई ग़ज़ल।
दुनियां में मुहब्बत की हो मिसाल मेरी माँ,
छूकर ‘असीम’, पाँव उठाई गई ग़ज़ल॥
#अशोक सिंहासने ‘असीम’
परिचय : अशोक सिंहासने लेखन जगत में ‘असीम’ नाम से लेखन करते हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं से पदाधिकारी के रुप में जुड़े हैं। साथ ही एक मासिक पत्रिका के प्रबंध संपादक और मनु प्रकाशन के संरक्षक भी हैं। आपका निवास वार्ड न. २२ सोगपथ(बालाघाट म.प्र.) में है।
Post Views:
504