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ये मत समझ लेना कि,
कंस और कारावास
सिर्फ वहीं है जहाँ
कृष्ण है।
सच तो यह है कि,
कंस और कारावास के
बिना अधूरा हर
प्रश्न है।
जब मरती है एक
के बाद एक सात
संतानें, तब आठवें
नम्बर पर जन्म पाता
है कृष्ण।
ठीक वैसे ही जैसे,
जब बहती है जुल्म
की असंख्य नदियाँ,
और टूटते हैं अत्याचार
के अनगिनत पहाड़
तब आती है आजादी
की एक सुबह।
कृष्ण पर्याय है कंस
अत्याचार के अंत का,
और आजादी प्रतीक है
परतंत्रता की बेड़ियों की
विदाई की।
उम्मीद की किरण
कृष्ण भी है और,
आशा की प्रतीक
आजादी भी।
मुश्किल से मिलती है
आजादी और हजार
पहरों को तोड़कर,
जन्म ले पाता है
एक कृष्ण।
स्पष्ट है कि कृष्ण हो,
या आजादी –
महत्वपूर्ण है हर वो
चीज जो मुश्किल से
मिल पाती है,
जिसकी ऊंची कीमत
चुकाई जाती है।
अगर चाहते हो अपनी
आजादी को मुकम्मल
बनाना,
जिन्दगी में
कृष्ण को लाना,
तो आसान नहीं मुश्किल राह को चुनो,
फूलों की सेज नहीं, पथरीला पथ चुनो
महफिल की रंगीनियों का विचरण छोड़
आत्म मंथन की भट्टी में खुद को भुनो ।
#डॉ. देवेन्द्र जोशी
परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।
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Mon Aug 14 , 2017
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