भक्तिगीत

0 0
Read Time2 Minute, 31 Second
vijaykant
तुम परम दिव्य प्रभु जी,
तुमको है कोटि नमन
तुम निराकार परमेश्वर,
साकार भी बने स्वयम्॥
तेरा राम रूप अति सुन्दर,
श्री कृष्ण रूप नहीं कम ?
तेरा शिव रूप कल्याणक,
रुद्र रूप है परम प्रचन्ड ॥
शारदा लक्ष्मी तुम रूद्राणि,
तुम त्रिगुणा शक्ति अनन्त।
तुम रुक्मिणी सीता  माता,
तुम हो  जगधात्री धन्य ॥
तुम परम दिव्य हे प्रभु जी,
तुमको है कोटि  नमन ॥
तुम शुद्ध भाव सज्जनों में
फूलों  में तुम्हीं   सुगंध ।
तुम्हीं  गौरव गिरीवर के,
सागर  की तू  ही तरंग ॥
ग्रह तारक नक्षत्र जीव जग,
सचर अचर जड़  जंगम।
सब गतिमान  हैं तुमसे,
हो उनमें उद्भासित तुम॥
ऋषियों ने असंख्य वर्षों,
तप कर पाए तेरे दर्शन।
तब ग्रंथ लिखे अद्भुत वे,
करते तव अनुपम वर्णन॥
तुम परम दिव्य हे प्रभु जी,
तुमको है कोटि  नमन॥
                                                                     #विजयकान्त द्विवेदी 
परिचय : विजयकान्त द्विवेदी की जन्मतिथि ३१ मई १९५५ और जन्मस्थली बापू की कर्मभूमि चम्पारण (बिहार) है। मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के विजयकान्त जी की प्रारंभिक शिक्षा रामनगर(पश्चिम चम्पारण) में हुई है। तत्पश्चात स्नातक (बीए)बिहार विश्वविद्यालय से और हिन्दी साहित्य में एमए राजस्थान विवि से सेवा के दौरान ही किया। भारतीय वायुसेना से (एसएनसीओ) सेवानिवृत्ति के बाद नई  मुम्बई में आपका स्थाई निवास है। किशोरावस्था से ही कविता रचना में अभिरुचि रही है। चम्पारण में तथा महाविद्यालयीन पत्रिका सहित अन्य पत्रिका में तब से ही रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। काव्य संग्रह  ‘नए-पुराने राग’ दिल्ली से १९८४ में प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष लगाव और संप्रति से स्वतंत्र लेखन है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

पावनता

Wed Aug 2 , 2017
अंतस में होगा नहीं,जब तक ज्ञानालोक। बने रहेगें रात-दिन,जीवन में दुःख शोक॥ जितनी माला फेरिए, करिए मंत्रोच्चार। मन की पावनता बिना,यत्न सभी बेकार॥ अधरों पर हरि नाम है,मन में कटुता भाव। पार तरे कैसे कहो,भव सागर से नाव॥ धर्म पंथ की आड़ में,चलती मुहिम विशेष। धर्म नाम पर हो रहा,धर्म […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।