क्यूं धीर बूंदें खो रही हैं।
क्यूं जागती हैं मेरे संग में,
जबकि वो सुख से सो रही है॥
सावन की ये ठंडी हवा क्यूं,
है मन मेरा विरह अग्नि में तो क्यूं,
न लपटें चैन उसका खो रही है॥
आज क्षितिज पर भी क्यूं मुझको,
ये धरती-अम्बर न मिलते दिखते हैं।
प्रिय के बिना तो किसी का साथ ही न चाहता हूँ,
फिर भी न जाने क्यूँ ये धरती साथ मेरे रो रही है।
सोचा था मैंने जाम लूँ मैं,
कुछ पल तो उसकी याद बिसरे।
न जाने जुदा होकर के भी क्यूं,
मदहोश आँखें उसकी खातिर हो रही हैं॥
क्यूँ नजर आती है मुझको,
सारी ही सृष्टि ये व्याकुल॥
मैं हूँ ‘अकेला’ तो क्यूँ आँखें,,
यूँ बादलों की चोर रही हैं।।
है वेदना गर मेरे मन में,
क्यूं धीर बूंदें खो रही हैं।
जबकि वो सुख से सो रही है॥
परिचय : दिनेश सैनी ‘अकेला’ हरियाणा से हैं। हिसार केमिर्जापुर रोड पर श्याम विहार में बसे हुए हैं। आप वर्तमान में शिक्षा में स्नातक में अध्ययनरत हैं। लेखन में काफी समय से सक्रिय हैं। श्री सैनी बारहवीं की पढ़ाई के समय से ही लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। गीत,कविता और गज़ल में विशेष रुचि है।
Waah
Bhoat bdiya
Dil ko chuh gyi ye pngtiyaan
Keep it up.
Waah
Bhoat bdiya bhai
Dil chuh leya
Aage ese hi likthe rho.