हस्तक्षेप ऐसा जो किसी भी महत्वाकांक्षी नेता को हजम नहीं हो सकता है। यह बात है सरदार वल्लभ भाई पटेल की, जब उन्होंने सारे राज्यों को स्थानीय राजाओं से बातचीत करके सरकार के अधीनस्थ कर लिया था तो चुनावों का दौर आया। यह दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एकाधिकार की व्यवस्था को ही समाप्त करने जा रहा था,इसीलिए सौराष्ट्र के गणमान्य नागरिक एवं नेतृत्व दोनों ही प्रसन्न थे। धीरे-धीरे सारी योजनाओं एवं संविधान के अनुसार नियम-कानून का क्रियान्वयन हुआ,परंतु साथ ही साथ महत्वाकांक्षी दलों एवं नेताओं की संख्या भी बढ़ती चली गई।आरोप-प्रत्यारोप का खेल नागरिकों एवं अनुगमन करने वाले लोगों की मजबूरी के साथ खिलवाड़ बनता गया। घर से गली,गली से मोहल्ला, मोहल्ले से नगर, नगर से प्रदेश, प्रदेश से देश, सारा हिन्दुस्तान राजनीतिक विधाओं की चपेट में समय को बांटकर एवं विस्तारित करके कलियुग को आम जनता का भोग लगाती रही,और चुनाव में खंड-खंड में देश के विकसित होने का समय या तो बर्बाद हो गया या बड़े-बड़े जाने-माने ज्ञात-अज्ञात घोटालों का शिकार बनता गया। यह निर्धारित नहीं हो पाया कि आखिर कोई व्यक्ति चुनाव लड़ता क्यों है ?? कहते हैं समय से कोई नहीं जीत पाया तो फिर क्यों इस चुनाव ने समय को हराकर बिखरा हुआ विकराल रूप ले लिया। क्यों पूरी भारत भूमि में चुनाव एक समय पर नहीं हो सकता?? क्यों कोई आयोग चुनाव को अपना बंदी नहीं बना पाया?? इन बातों का उत्तर कोई दल विशेष नहीं देगा, बल्कि भारतवर्ष की जनता को अपने देश की नीतियां सुधारने हेतु इस जवाब को ढूंढना होगा। बिना किसी पक्षपात के,स्वयं को एक निर्णायक बनाकर जनता को देखना होगा कि,उनका समय किसके अधीन है, चुनाव के या किसी नेता के????
परिचय : रजनीश दुबे की जन्म तिथि १९ नवम्बर १९९० हैl आपका नौकरी का कार्यस्थल बुधनी स्थित श्री औरोबिन्दो पब्लिक स्कूल इकाई वर्धमान टैक्सटाइल हैl ज्वलंत मुद्दों पर काव्य एवं कथा लेखन में आप कि रुचि है,इसलिए स्वभाव क्रांतिकारी हैl मध्यप्रदेश के के नर्मदापुरम् संभाग के होशंगाबाद जिले के सरस्वती नगर रसूलिया में रहने वाले श्री दुबे का यही उद्देश्य है कि,जब तक जीवन है,तब तक अखंड भारत देश की स्थापना हेतु सक्रिय रहकर लोगों का योगदान और बढ़ाया जाए l
Very Nice thought rajneesh ji….
धन्यवाद सर जी