एक उमर गुज़ारी है उसने,
एक वक़्त-सा है बीता वो।
कतरा-कतरा मोम हुआ,
ऐसे लम्हा-लम्हा जीता वो॥
बारिश में भीगा करता है,
पूस में पूरा ठिठुरा वो।
गर्मी की लू में जला किया,
ऐसे लम्हा-लम्हा जीता वो॥
भूखा भी सो जाता है,
कर्ज़े में पूरा डूबा वो।
गाली थप्पड़ है मिला किया,
ऐसे लम्हा-लम्हा जीता वो॥
दहलीज से उठती डोली में,
उसने बेटी को विदा किया।
ना जाने कैसे-कैसे उसने,
दहेज़ भी सारा अदा किया॥
डोली में उठती बेटी से,
इक और उधार में डूबा वो।
कर्ज़े में पुश्तें जिया किया,
ऐसे लम्हा-लम्हा जीता वो॥
खेत दरार से भरा हुआ,
औ माथ पकड़ के रोता वो।
भगवान भी मानो पत्थर हों,
बेकार में बीजें बोता वो॥
पिछले साल के कर्ज़े हैं,
क्या होगा ये ही रोता वो।
चिंता में रातें जगा किया,
ऐसे लम्हा-लम्हा जीता वो॥
साँसें रब से मिलती हैं,
औ सबको भोजन देता वो।
किसान है अपने भुजबल से,
मिट्टी को सोना करता वो॥
मटमैले कपड़ों के अंदर,
मेहनतकश काया रखता वो।
खेतों में घाम बहा किया,
ऐसे लम्हा-लम्हा जीता वो॥
खून रौद का खाता है,
श्रम की नींद सोता वो।
पूरा जीवन खेतों में रहा किया,
ऐसे लम्हा-लम्हा जीता वो॥
#पुष्कर कुमार ‘पुष्प’
परिचय : पुष्कर कुमार का साहित्यिक उपनाम-पुष्प है। जन्मतिथि-९ मार्च १९९२ और जन्म स्थान-ग्राम अम्बाजीत, जिला-हज़ारीबाग़ (झारखण्ड)है। वर्तमान में शहर हजारीबाग के यशवंत नगर में रहते हैं। आपने स्नातकोत्तर(अर्थशास्त्र) तक शिक्षा हासिल की है,और कार्यक्षेत्र-अध्यापक(अर्थशास्त्र,हिंदी) का है। लेखन विधा-दोहा,सोरठा,रोला,ग़ज़ल,मुक्तक एवं कविता है। पुष्कर कुमार ‘पुष्प’ ने कुछ समय पहले ही अपने विचारों को शब्दों में ढालना शुरू किया है। आपके लेखन का उद्देश्य-जनजागरण और हिंदी को विस्तार देना है।
पुष्प हजारीबाग के उभरते हुए रचनाकार हैं। खासकर ग़ज़ल और दोहे लिखने में इन्हें महारत हासिल है