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तुम्हारे दर पर आकर के भगवन,
हौले से तुमको जगा रही हूं,
न कुछ मैं जानूँ,न कुछ मैं समझूं,
तुम्हीं से तुमको मंगा रही हूँ।
तुम्हीं सुदामा के मित्र प्यारे,
तुम्हीं यशोदा की आंखों के तारे,
मेरी भी बिगड़ी बनाओ प्यारे,
तुम्हीं से अर्जी लगा रही हूं।
तुम्हारे दर पर आकर के भगवन,
तुम्हीं से तुमको मंगा रही हूं।
तुम्हीं ने विष को जहर बनाया,
तुम्हीं ने गज को ग्राह से बचाया,
मीरा-सी भक्ति भी मैं तुमसे माँगू,
ये बात फिर से दोहरा रही हूँ।
तुम्हारे दर पर आकर के भगवन,
तुम्ही से तुमको मंगा रही हूँ।
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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