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कितना अच्छा होता बचपन,
प्यारी रंग-रंगोली,
सबके मन को भाती,
उनकी हँसी ठिठोली |
चंदन कहें बचपन को ,
या कहें अक्षत रोली,
कितनी प्यारी लगती ,
तुतलाती मीठी बोली |
कितना सहज होता ,
बच्चों का हँसना रोना ,
सबसे अच्छा लगता उनको,
अपना खेल-खिलौना |
मर्जी अपनी नहीं चले तो,
मनमर्जी पर आते,
मुँह फुलाते गुब्बारे-सा,
भुट्टे-सा अकड़ाते |
दादा-दादी के,
दिल के टुकड़े,
माँ-बापू के ,
नयन सितारे,
सच कहें तो बच्चे,
सबको लगते प्यारे,
#इंद्रजीतसिंह नाथाव
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