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एक चाँद घूँघट से निकला,
निकला एक आसमान से।
ईद मनाली यारा हमने,
परसों वाली शाम से॥
संग एक सितारे थे,
वो भी क्या नज़ारे थे।
घूँघट में हुआ दीदार यारा,
परसों वाली शाम से॥
चाँद बादलों में छिप गया,
हवा से घूँघट सरक गया।
उनकी हमसे हो गई आँखें चार,
यारा परसों वाली शाम से॥
!
नैना उनके झुक गए,
हमारे मस्ती में उठ गए।
गज़ब किया सिंगार यारा,
परसों वाली शाम से॥
वो हमारे हो लिए,
हमभी उनके हो लिए।
क्या हिन्दू,क्या मुसलमां,
यारा परसों वाली शाम से॥
काश ‘दशरथ’ ऐसा हो जाए,
हर मानव में मानवता जग जाए।
फिर प्यारा हिन्दुस्तान यारा,
परसों वाली शाम से॥
#दशरथदास बैरागी