कविता (छन्द)

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पुष्प के आसन बैठी लिये कर,
बीन सुरूप छटा छिटकावति।
पूरन चन्द समान सुआसन,
कंज सों नैंनन की छवि छाजति।।
जाके पवित्र चरित्र सदा,
सब देव-अदेव हैं चाव सों गावति।
सो वरदायिनी देवी सदा,
“मृदु” भक्तन के हित सिद्धि है लावति।।

#डा. मृदुला शुक्ला “मृदु”
लखीमपुर – खीरी 
उत्तर – प्रदेश

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