मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की बुधनी तहसील मुख्यालय से 24 किमी दूर ग्राम जैत में एक मध्यमवर्गीय कृषक प्रेमसिंह चैहान के घर 5 मार्च 1959 को माता सुदंरबाई ने एक ओजस्वी बालक को जन्म दिया। जो बडा होकर शिवराज सिंह चैहान के नाम से सारे जगत में विख्यात हुआ। इसकी झलक शिवराज के बचपन में ही दिखाई देने लगी थी, जब उनकी उम्र महज 8 से 9 वर्ष की थी तब पहली रैली निकाली। मजदूरों के साथ नर्मदा के तट पर एक दिन बूढें बाबा के चबूतरे पर उन्होंने ग्रामीण मजदूरों को इक्ट्ठा किया और उनसे बोले दो गुना मजदूरी मिलने तक काम बंद कर दो। मजदूरों का जूलूस लेकर शिवराज ने नारे लगाते हुए सारे गांव का भ्रमण किया। जैतगांव में 20 से 25 मजदूरों के साथ एक बच्चा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा था। मजदूरों का शोषण बंद करो, ढाई नहीं पांच पाई दो। घर लौटे तो चाचा आग बबूला हो रहे थे क्योंकि शिवराज के भडकाने से परिवार के मजदूरों ने भी हडताल कर दी थी। शिवराज की पिटाई करते हुए उन्हें पशुओं के बाडे में ले गए और डांटते हुए बोले कि अब तुम इन पशुओं का गोबर उठाओ, इन्हें चारा डालो, जंगल ले जाओ। शिवराज ने ये सब काम पूरी लगन से किया लेकिन मजदूरों को तब तक काम पर नहीं आने दिया, जब तक सारे गांव ने उनकी मजदूरी नहीं बढा दी।
स्तुत्य, बरकतुल्लाह विश्विद्यालय, भोपाल से गोल्ड मेडल के साथ दर्शनशास्त्र की उपाधि प्राप्त शिवराज सिंह चैहान की धारदार, धारा प्रवाह भाषण और राष्ट्रीय मुद्दों पर ओजस्वी वाक्यकला से किये गए जागरण का कोई जवाब नहीं था। अभिभूत, 1990 में शिवराज सिंह को भाजपा संगठन ने बुधनी से चुनाव लडने की अनुमति दी। सालों से लोकसभा, विधानसभा के अलावा स्थानीय चुनावों में पार्टी का धुआंधार प्रचार करने वाले शिवराज सिंह को पहली बार अपने लिए मत मांगना पडा। प्रचार के दौरान गांव के दो-चार घरों से रोटी, प्याज, मिर्ची इक्ट्ठी करवा लेते और पेट भरकर उनकी प्रचार टोली आगे बढ जाती। शिवराज सिंह ने मतदाताओं से एक वोट और एक नोट मांगा। इस नारे को ऐसा समर्थन मिला कि सारा चुनाव खर्च निकल आया और भारी मतों से विजय का बिगुल बज गया। पश्चात् ही 1991 के लोकसभा चुनाव में विदिशा संसदीय क्षेत्र में भी जीत का जयघोष हुआ।
अविरल, भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, महासचिव, प्रदेश अध्यक्ष, 5 बार सांसद और 5 बार विधायक रहे स्वर्णिम मध्यप्रदेष के दृष्टा शिवराज सिंह चैहान ने 29 नवम्बर 2005 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जो आज तक इस दायित्व का बखूबी निर्वहन करने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बन चुके हैं। चौथी बार प्रदेश की बागडोर अपने हाथ में लेने वाले शिव के राज में जरूरतमंदों, शोषितों और पीडितों को सिद्दत और सलीके से साहरा मिलते दिखा। आज भांजियों के मामा, बहनों के भाई, किसानों के हमदर्द और बुजुर्गो के पुत्र बनकर नित नई योजनाओं को अमली जामा पहनाया।
फलीभूत, मुख्यमंत्री की मौजूदगी का अहसास आमजन तक हो कि हमें चिंता करने की जरूरत नहीं हैं। हमारी सुरक्षा, विकास व सेवा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने वाला हमारा शिवराज हमारा मुख्यमंत्री ही नहीं अपितु जनसेवक हैं। लिहाजा प्रदेश को मंदिर तथा इसमें रहने वाली जनता को अपना भगवान मानने वाले शिवराज सिंह सदा-सर्वदा इनके कल्याण और उत्थान के लिए जीने का संकल्प दोहराते रहते है। यह ही भाव शिव के राज और काज होने का दंभ भरती है। जो प्रदेशवासियों के लिए मुख्यमंत्री से हम नहीं अपितु मुख्यमंत्री हम से है की दृढ आत्म मुग्धता दिलाती हैं।
अभिष्ट, अंत्योदय से सर्वोदय की मीमांसा को अंतस में समाए हुए शिवराज सिंह के लिए राजनैतिक वंशवाद नहीं, कार्यकर्ता के तौर पर मिली पहचान है, बदौलत ही मुख्यमंत्री के दायित्व को चार बार से बखूबी निभा रहे हैं। उनके व्यक्तित्व और कृत्तिव में सारे गुण विधमान है जो उनको इस दायित्व तक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है। वस्तुतः वक्त की नजाकत के नजरिए से अब शिवराज आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और सुदृढ़ मध्यप्रदेश बनाने की तैयारी जनसहयोग, संगठन, विकास, सेवा और सुशासन के बूते करते नजर आ रहे हैं।
हेमेन्द्र क्षीरसागर,
लेखक, पत्रकार व विचारक)