दुनियाँ को समझो

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कही गम है तो कही खुशी।
कही प्यार तो कही टकरार।
कही मिलना तो कही बिछड़ना।
कही जिंदगी तो कही मौत।
बड़ा ही अजीव है दृश्य
इस दुनियाँ का।।

जो दुनियाँ को समझा
और उसी अनुसार ढल गया।
वो मानो मौजमस्ती से जी गया।
जो जमाने को नहीं समझा
वो चिंताओं में फँस गया।
और अपनी जिंदगी को
अलग दिशा में ले गया।।

कलयुगी जमाने में
सभी मतलबी नहीं होते।
कुछ तो कलयुग में भी
हटकर इंसान होते है।
माना कि आज का
जमाना खराब है।
फिर भी कुछ रिश्ते तो
सदयुग जैसे होते हैं।।

इसलिए दुनियाँ को देखो,
समझो और आगे बढ़ो।
फिर जो तुम चाहोगे
वो तुम्हें मिल जाएगा।
और कलयुग में भी
नया इतिहास लिखा जाएगा।।

जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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