समाज का एक आम नागरिक अपने ही जातिवर्ग के सामाजिक-राजनैतिक संगठन की मार झेलने को मजबूर है। जिसका मूल कारण है, समाज के पढ़े-लिखे विद्वानों का मौन रहना ओर दबंगों द्वारा किए जा रहे अत्याचार को जबरिया सहन करना। किसी विद्वान-ज्ञानी ने क्या ख़ूब कहा है -: परिवार और समाज दोनों ही बर्बाद होने लगते हैं, जब समझदार मौन और बेवकूफ़ चिल्लाने लगते हैं। हालाँकि बेवकूफ़ इसमें एक तुच्छ मानसिकता का परिचय देता है, जिसे समाजजन स्वीकार करते हैं।
आज वर्तमान में कोविड 19 के महामारी के दौर में मानवता इंसानियत से बढ़कर राजनैतिक संगठनों का बोलबाला है। यह राजनीतिक संगठन घोर आपदा के वक़्त भी सत्ता की रोटी सेक अवसर की तलाश में जुटे हैं, जिसके चलते सामाजिक संगठन में गुटबाज़ी के चलते एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। आज ज़रूरत है समाज के शिक्षित वर्ग को आगे आने की, जो अपनी आँखें मूंदे-मुँह छिपाए बैठे हैं, जो अटल सत्य है।
भारत की महान हस्ती नोबल पुरस्कृत रविन्द्रनाथ टैगोर ने भी कहा है, जब तक मैं ज़िन्दा हूँ, देशभक्ति को मानवता से ऊपर नहीं होने दूँगा। लेकिन आज के दौर में इसके विपरीत हो रहा है। इस आपदा के दौर में मानवता, इंसानियत और भुखमरी में समाज में राहत के नाम पर भाजपा और कांग्रेस जैसे राजनैतिक दलों के झंडे उठाए जा रहे हैं, जिसमें भी अंतरकलह और गुटबाज़ी देखने को मिल रही है, जो समाज को आगे बढ़ाने के बजाए बर्बादी की ओर धकेल रही है। क्या यही नि:स्वार्थ समाजसेवा है या समाज को बना दिया गया है राजनीति का अखाड़ा?
तमाम अविकसित समाज में कुछ ऐसे लोग पदों पर आसीन हैं, जो कपड़े तो खादी के पहनते हैं लेकिन शिक्षा निम्न स्तर की होती है। जो अपने बीवी-बच्चों को न संभाल पाए ओर बन बैठे हैं समाजसेवी, जिनकी स्वयं के घर-परिवार में इज़्ज़त नहीं, वह समाज का झंडा क्या ऊँचा करेगा! आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसा व्यक्ति समाज को कहाँ ले जाएगा, जो ख़ुद छुटभैये नेताओ की चमचागिरी कर रहा हो। ऐसा समाजसेवी झूठा वोट बैंक दिखा, राजनेताओ को भी भ्रमित कर रहा है कि मेरे साथ समाज है। मैं लिखता सिर्फ़ इसलिए हूँ कि आने वाली समाज की नस्ले अंधी, गूँगी और बहरी न रह जाए।
पिछड़े वर्ग में तमाम ऐसे नेताओं की भरमार है, जिनकी उम्र गुज़र गई राजनीति करते-करते लेकिन आज तक पार्टी में मध्यप्रदेश तो छोड़ो, जिले में भी सम्मान जनक पद हासिल न कर पाए, कई ऐसे नेता भी हैं, जो दो-तीन बार विधानसभा लड़ चुके होते लेकिन उन्हें आज तक पार्षद का टिकट भी नसीब न हुआ, इसका मुख्य कारण है कि वह नेता समय के हिसाब से न ख़ुद में बदलाव ला पाए और न समाज में। वक़्त है बदलाव का, जो वक़्त के साथ बदल गया, वो छोटी उम्र में भी उच्च पदों पर आसीन हो गया। ऐसे कई प्रमाण शहर की जनता के सामने मौजूद हैं। नेता जी अब गले और हाथ में सोने की मोटी-मोटी चेन डालने ओर खादी के कपड़े पहनने से काम नहीं चलेगा – जनता भी जागरुक हो रही है, चाहे वह शहर की बात हो या समाज की।
जिसकी लाठी उसकी भैंस, यह कहावत भी समाज में सक्रिय नज़र आ रही है, जिसके चलते दंबगों ने समाज पर कब्ज़ा जमाए रखा है और समाज के वोट बैंक की आड़ में राजनीति कर रहे हैं, जिसका लाभ समाज को पहुँचने के बजाए व्यक्तिगत केश किया जा रहा है, जिसके चलते दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक़्क़ी की जा रही है। सब गोलमाल जारी है और समाज आज भी वहीं खड़ा है। आज समय है कि समाज के नेता समाज के हित में स्वयं की राजनीति न करते हुए समाज के लिए मूल्य आधारित राजनीति करें। स्वयं के साथ समाज का भी विकास करें, यही विनय है। कुछ लोगों ने राजनीति की आड़ में समाज को भी आर्थिक लाभ पहुँचाया है, उनको दिल से बधाई।
आपदा के दौर में राजनीति नहीं करनी चाहिए। समाजसेवा का पहला लक्ष्य होता है, मानवता, बस यही धर्म निभाना है। इस बुरे दौर में न तो कांग्रेस घर राशन पहुँचा रही, न ही भाजपा, फिर गुणगान क्यों? देशभक्ति से भी पहले मानवता को स्थान दिया गया है, फिर समाज सेवा ओर अंत मे राजनीति जिसका आज उल्टा होता प्रतीत हो रहा है।
सामाजिक आयोजन में राजनेता क्यों? विचारणीय है, उससे समाज का लाभ या अन्य का, नियमों के विपरीत पदाधिकारी, अब सहन नहीं होगा।
नोट -: उक्त सभी विचार मेरे व्यक्तिगत हैं, इसका किसी समाज एवं अन्य व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है।
किशोर सिंह
इंदौर/भोपाल (मध्य प्रदेश)