क्यों समझता मुझे खिलौना, आखिर मैं भी तो हूं इंसान ।
देखकर तेरी तानाशाही, बहुत ज्यादा हूं मैं हैरान।।
पुरुषवाद का घमंड तुझे, तुझ पर अंधा नशा ये छाया है,
बनाकर पिंजरे की चिड़िया मुझे, क्या बता तूने पाया है।
गुरुर ने तुझमे पैर पसारे, बेईमानी का तुझ पर साया है।
अपनी उंगली पर नचाये, तूने ये कैसा हक जताया है।
फूलकर तू कुप्पा हो गया, भरा है तुझमे बहुत गुमान।
क्यों समझता मुझे खिलौना, आखिर मैं भी तो हूँ इंसान।।
हमसाया बनकर तेरे साथ खड़ी, पर तुझे नजर ना आये।
थोड़ी हँसती देख मुझे, तू अंदर तक तिलमिला जाये।
“मलिक” खड़ी ये बाट जोहे, वो खुशनुमा पल कब आये।
मेरा वजूद स्वीकारे तू तुझको, बिल्कुल अपने जैसा भाये।
“सुषमा” तुझे हर बार बताये, तू मान मेरी भी है पहचान।
क्यों समझता मुझे खिलौना, आखिर मैं भी तो हूं इंसान।।
परिचय : सुषमा मलिक की जन्मतिथि-२३ अक्टूबर १९८१तथा जन्म स्थान-रोहतक (हरियाणा)है। आपका निवासरोहतक में ही शास्त्री नगर में है। एम.सी.ए. तक शिक्षितसुषमा मलिक अपने कार्यक्षेत्र में विद्यालय में प्रयोगशाला सहायक और एक संस्थान में लेखापाल भी हैं।सामाजिक क्षेत्र में कम्प्यूटर प्रयोगशाला संघ की महिला प्रदेशाध्यक्ष हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और ग़ज़ल है।विविध अखबार और पत्रिकाओ में आपकी लेखनी आती रहती है। उत्तर प्रदेश की साहित्यिक संस्था ने सम्मान दिया है। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी आवाज से जनता को जागरूक करना है।