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त्रिपाल में राम बैठे,नेताजी हैं महलों में
मंदिर बना न सको बात मत करिए
जो मंदिर की बात छेड़ो सांप सूंघ जाता है
जनता से कहते हो धीरज को धरिए
जी वादे तो करे हैं खूब वोटों की जुगाड़ में
वादे तो निभा न सके पीर अब हरिए
जनता की बात छोड़ो खूब चाहें वादे तोड़ो
जीत दी है उस भगवान से तो डरिए
इति शिवहरे
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