इन दिनों चारो तरफ ही तो
प्राणवायु के लिए संघर्ष है
फेफड़े जवाब दे रहे है
सांसे बार बार उखड़ रही है
आक्सीजन लेवल घट रहा है
हे राम, यह क्या हो रहा है
बूढ़े,जवान,अब बच्चों की बारी
कैसी है जीवन की लाचारी
मगर यह तो होना ही था
आक्सीजन लेवल घटना ही था
कभी हर घर मे पेड़ होता था
घर मे आंगन, मुंडेर होता था
घेर मवेशियों का ठिकाना था
घेरो में चिड़ियों का चहचहाना था
बडे बडे बाग ,खेत लहलहाते थे
अनाज,फल सब्जी घर की खाते थे
आधुनिकता की हवा ने गांव उजाड़े
गांव छोड़ शहर जाने लगे सारे
किसान शहर में नोकर हो गए
घरों से निकल फ्लैट में सिमट गए
भौतिक दूरी घटती चली गई
दिलो की दूरी बढ़ती चली गई
बाग कटते रहे,खेत बिकते रहे
कंक्रीट के जंगल बढ़ते ही रहे
आक्सीजन लेवल घटना ही था
कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ना ही था
ऐसे में खता ही क्या है कोरोना की
मर्ज बढ़ता ही गया नही कोई दवा की
कुंभ, चुनाव, शादियां जारी रही
कोरोना महामारी हम पर भारी रही
कितने ही चले गए कितने आहत है
आक्सीजन को लेकर झंझावात है
एक नही कई आक्सीजन फैक्ट्री
देश मे जगह जगह लगायी जाएगी
फैक्ट्री के लिए अड़चन बन रहे
पेड़ो की शहादत दी जाएगी
आक्सीजन की कमी दूर की जाएगी।
डॉ श्रीगोपाल नारसन
रुड़की,उत्तराखंड