मैं गीत विरह के गाता हूं…
अधरों से जब-जब अधर मिले,
मैं मंद-मंद मुस्काता हूं।
मैं गीत…ll
जहां शीतल हृदय,है तपन वहीं,
है मिलन जहां,बिछड़न भी वहीं।
तब प्रणय गीत का मर्म समझ मैं,
गीत विरह के गाता हूंl
मैं गीत…ll
सावन आता,वर्षा आती,
बादल से बूंदें लुट जाती।
शाम भी जब-जब आती है,
तो रात उसे ले जाती है।
पर सुबह सूर्य इठलाता है,
वह रात चुरा ले जाता है।
मैं गीत…ll
नयन उठें,नयनों से बसें,
प्रियतम जब-जब प्रियपाश कसे।
तब दिल से दिल मिल जाता,
और बिछड़न से घबराता है।
मैं गीत…ll
है मिलन का अंत विरह जग में,
कांटे बिखरे हैं पग-पग में।
जब मनमीत यहां लुट जाता है,
और चाक हृदय हो जाता है।
तब मैं गीत विरह के गाता हूं…ll
#अमिताभ प्रियदर्शी
परिचय:अमिताभ प्रियदर्शी की जन्मतिथि-५ दिसम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-खलारी(रांची) है। वर्तमान में आपका निवास रांची (झारखंड) में कांके रोड पर है। शिक्षा-एमए (भूगोल) और पत्रकारिता में स्नातक है, जबकि कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता है। आपने कई राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक अखबारों में कार्य किया है। दो अखबार में सम्पादक भी रहे हैं। एक मासिक पत्रिका के प्रकाशन से जुड़े हुए हैं,तो आकाशवाणी रांची से समाचार वाचन एवं उद्घोषक के रुप में भी जुड़ाव है। लेखन में आपकी विधा कविता ही है।
सम्मान के रुप में गंगाप्रसाद कौशल पुरस्कार और कादमबिनी क्लब से पुरस्कृत हैं। ब्लाॅग पर लिखते हैं तो,विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा रेडियो से भी रचनाएं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज को कुछ देना है