सागर से भी गहरा है
हमारा आपका रिश्ता।
आसमान से भी ऊंचा है
हमारा आपका का रिश्ता।
मैं दुआ करता हूँ ईश्वर से,
की ऐसा ही बना रहे ये रिश्ता।।
समर्पण का दूसरा भाव हैं
आपका हमारा रिश्ता।
विश्वास की अनूठी गाथा हैं
लेखक पाठक का रिश्ता।
स्नेह प्यार की मिसाल हैं
हम दोनों का रिश्ता।
तभी तो माँ वीणा की कृपा
बनी रहती है लेखक पर।।
दिलकी गहराई से दुआ दी है
आप लोगों ने मुझे।
इसी तरह से आगे भी
प्रतिक्रियां आप देते रहे।
नज़र ना लगे कभी हम
दोनों के इस रिश्ते को।
चाँद-सितारों से भी लंबा साथ
बना रहे लेखक पाठक का।।
कभी ख़ुशी कभी गम
ये स्नेह हो न कभी कम।
हम लिखते रहे आप पड़ते रहो
लेखक पाठक के रिश्तों को
और मजबूत करो।
तभी देश में गुलाब की
तरह दोनों महकते रहोगें।।
लेखक के भावों को समझकर
शायद आपको सुकून मिलेगा।
बुझते हुए दिलों में
खुशियों के कमल खिलेंगे।
दिनका हर लम्हा ख़ुशी देगा
हमारे पाठक गणों को।
गमकी हवा छू के भी ना गुजरे
ऐसी दुआ लेखक दिलसे
अपने पाठको देता हैं।।
संजय दिलसे आभारी है
अपने श्रोता और पाठको का।
जिन्होंने संजय को इस
मुकाम तक पहुँचाया।
आगे भी सलामत रहे
हमारा आपका साथ।
क्योंकि लेखक का परमात्मा
उसका पाठक ही होता है।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुंबई )