कहते हैं घर की बुनियाद अच्छी हो तो छोटे मोटे तूफान थाम लेते हैं। घर का अगर एक सशक्त बीम हो तो बाकियों को भी सशक्त और आर्दश के साथ रहना सिखाती है। इस महामारी काल में देश के चार स्तम्भों में से एक हमारी संवैधानिक व्यवस्था इन दिनों एक मजबूती की तरह सभी स्तम्भों को राह दिखाती नजर आ रही है।उनकी सक्रियता ने देश की इस समय चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं पर अपनी पैनी नजर से कार्य के तौर तरीके पर वेहद गम्भीर टिप्पणी कर सुधरने का मौका दिया है।दरअसल हमारे देश में संसाधनो की कोई कमी नही है।कमी है तो सिर्फ नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने की।
हाल के दिनों में राज्य, केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग पर की गयी उनकी सख्त टिप्पणी ने एक बार सभी को सोचने का और अपनी अपनी कर्तव्य निभाने का अवसर दिया है।याद कीजिए बिहार का वह दौर जब पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के रवैया से सख्त नाराज होकर इसे जंगलराज की उपमा दी थी ।ठीक उसी तरह हाल के दिनों में मौजूदा सरकार के स्वास्थ्य विभाग को सेना के हवाले करने की सख्त टिप्पणी की है शायद इन टिप्पणी का कुछ असर सरकार में बैठे हुक्मरानो को हो।इसी तरह चुनाव आयोग को भी आडे हाथ लेते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि जब चुनाव प्रचार में भीड हो रही थी तो क्या वे दूसरे ग्रह पर थे।
आज देश की हालत किसी से छिपी नही है।सिर्फ प्रचार करने के लिए देश के मंत्री नहीं बनाये जा सकते।चंद कागजी आंकडे देश की विकास का पैमाना नही हो सकता । देश की जनता को रोजी, रोटी,और स्वास्थ्य अहम कार्य माना जाता है ।देश में वेरोजगारी सबसे ऊँचे स्तर पर,जीडीपी का ह्रास लगातार जारी और मँहगाई चरम पर फिर ऐसे में महामारी ने संवैधानिक पीठ को मजबूर कर दिया क्योंकि वह न्याय की देवी आखिर कबतक चुप रहेगी जिसपर आम आवाम न्याय का भरोसा करती है। देश की शीर्ष अदालतों ने कई मौको पर मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगायी है और राज्यों को ऑक्सीजन, दवा, वेंटिलेटर और एम्बुलेंस जैसी आवश्यक सामग्री राज्यों को बिना भेदभाव किए मुहैया करवाने का आदेश दिया है।
आज एक आम भारतीय अपनी जीवन से तंग है आना-जाना खाना-पीना सैर -सपाटे सभी पर प्रतिबंध है, जैसे कोई गुलाम बन गया हो । पुलिस और स्थानीय प्रशासन का हर तरफ बोलबाला मनमाना चालान निर्दय की तरह किसी पर हाथ छोडना आम बात हो गयी है । आखिर ऐसा कबतक झेल सकते हैं लोग? 2014 में जब भारी बहुमत की सरकार बनी थी तो सबने एक साथ बदलते भारत का सपना देखा था यह इतना बदल जाएगा कि चारो ओर लाश ही लाश बिछ जाएगी और हमारे राजनेता उन लाशो पर बैठकर राजनीति करेंगे यह कितनी शर्म की बात है।
जब विपक्ष कमजोर और असहाय हो जाय तो प्रायः ऐसा होना स्वाभाविक होता है ।इसलिए विपक्ष को भी मजबूत होना लाजमी है विपक्ष लोकतंत्र की कार्यशैली का मुख्य आधार माना जाता है ।उन्हें लाशों पर राजनीति छोड देश के लिए संविधान पीठ की तरह आगे आकर जन आकांक्षा पर खडे उतरने का प्रयास करना चाहिए।
भारत विभिन्नता से भरा देश है।यहां के संसाधन का इस्तेमाल भी सभी को सीमित करना चाहिए। जिस तरह वे अपने घरों में सामानों का करते हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ और प्रकृति के प्रति उदासीनता ने आज हवा पीठ पर लादने की नौबत ला दी है।शहर का प्रदूषण स्तर बढ़ता ही जा रहा है ।
ठीक उसी तरह आज देश में भ्रष्टाचारी दुराचारी और कालाबाजारियों ने हर ओर लूट मचा रखी है ।जहा जहां भी लाकडाउन है वहां के बडे कारोबारियों ने सामान को जमा कर दोगुने रेट पर बेचकर अपनी अपनी तिजोरी भर रहे हैं ।जहां शराब बिक्री बंद है वहां शराब घर घर पहुँचाया जा रहा।आखिर लाकडाउन में ऐसी व्यवस्था क्यों?क्या भंडारण किए वगैर लाकडाउन लगाया गया ?तो फिर जिम्मेदार कौन? इन्ही सब मसले पर देश की तमाम अदालतों ने मौजूदा सरकारों को आड़े हाथ लेकर एक बार खोयी हुई विश्वास को पुनःसंजीवनी देने का कार्य किया है जिससे न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास और बढेगा।
आशुतोष
पटना बिहार