मैं कृतज्ञ हुईं
जब मैंने पाया कोख तुम्हारा
फिर जीवन को पाकर धन्य हुई मां
करती रही परिक्रमा हमेशा तुम्हारी
हर कदम पर तुमसे ही
मार्गदर्शन पाकर
चलती रही भ्रमणशील सी धरा पर
तुम्हारे और पापा की
अंगुली थामकर
बुनना सीखती रही
रिश्तों के खूबसूरत से तानों बानो को
जीवन के हर एक
जटिल संघर्ष को
पर्वत की भांति अडिग होकर
खड़े रहना सीखती रही तुमसे ।
वक्त के क्रुर थपेड़ों को
मधुर मुस्कराहटो के साथ
साधना सीखती रही तुमसे
सामाजिक कुरीतियों और व्यभिचारी
समाज के बीच
अपने सूर्य की भर्ती चरित्र को
मर्यादा की सीमा में रहकर
चलना सीखती रही तुमसे
तुम्हारे जाने के बाद भी
तुम्हारे संग बिताए अनंत लम्हों को
खुद में समेट कर
आज भी चलने का
सिलसिला अनवरत हासिल किए हैं
तुम पास नहीं हो अपने
भौतिक स्वरूप से
किंतु तुम्हारे विराट स्वरूप को
स्पंदन करते जी रही हूं
हर सांस अपनी
सच्ची प्रेरणा के साथ
जीने का प्रयास कर रही है
#स्मिता जैन