सारे देश को जो अन्य देता
खुद लेकिन भूखा सोता।
फिर भी किसी से कुछ
कभी नहीं वो कहता।
क्या हालत कर दी उनकी
देश की सरकार ने।
कठ पुतली सरकार बन बैठी
देश के पूंजीपतियों की।
तभी उसे समझ न आ रही
तकलीफे खेतिहर किसानो की।।
सारे देश को जो अन्य देता
खुद लेकिन भूखा सोता..।।
जब भी विपत्ति देश पर आती
अपना सब कुछ वो लगा देते है।
भले ही तन पर न हो कपड़ा
पर खेत को वोता है।
सब कुछ गिरवी रख देता
पर फर्ज न अपना भूलता।
और सभी की भूख को
खुद भूखा रहकर मिटता।
ऐसे होते है अपने देश के
सारे ये किसानगण।।
सारे देश को जो अन्य देता
खुद लेकिन भूखा सोता..।।
बहिन बेटी और बीबी के
सारे गहने रख जाते है।
लाला साहूकार के पास
और कभी-२ भूमि भी
गिरवी रखी जाती किसान की।
और नहीं छोड़ता हल
चलाना अपने वो खेतो में।
और छोड़ता देता अपने
खेतो को ईश्वर के आशीष पर।
फिर चाहे कुछ भी पैदा हो
उस ईश्वर की कृपा से।
उठ पायेगा खेत गिरवी से
या और रखा जायेगा।
पर खेती करना जीते जी
वो बंद नहीं करता है।।
सारे देश को जो अन्य देता
खुद लेकिन भूखा सोता..।।
नहीं समझ सकता कोई
किसानो के दर्दो को।
कभी चलाया नहीं हल
और न बहाया है पसीना।
वो क्या जाने देश के
किसानो के हाल को।
ऊपर से नीचे तक
जो कर्ज में डूबा रहता है।
क्या जाने वो जो बैठे है
एयर कंडिशन हालो में।
खुद को मसीहा कह रहे
अपने मुँह से किसानो का।
जबकि व्या खुद कर रही
हकीकत इन निकम्मो की।।
सारे देश को जो अन्य देता
खुद लेकिन भूखा सोता..।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)