मैं किसान हूं ,
देश का सम्मान हूं।
देश जाति भेदभाव से,
मैं अनजान हूं।।
पसीना बहाता हूं,
धूप में सिकता हूं।
खेत पनियता हूं,
अन्न उगाता हूं..
इंसा तो इंसा,
पशुओं को भी
खिलाता हूं..
क्योंकि,
मैं किसान हूं।।
ईश जो भी देता है,
मुझे बहुत होता है
जो उगाता हूं,
कौड़ियों में
बेच देता हूं..
लेकिन जब देता हूं,
कर्ज में दब जाता हूं..
क्योंकि,
मैं किसान हूं।।
अन्न उगाने में,
रूह तक उतार देता हूं..
पर तुम्हें नही है शऊर
अन्न को सहेजने का,
न मुझे रखने देते हो..
न खुद रखते हो,
छोड़ देते हो..
मेरी मेहनत को
आसमां के नीचे
सड़ने के लिए।
और मुझे करते हो विवश,
गले मे फंदा डाल..
किसी पेड़ से
किसी खूंटी से,
किसी छत के पंखे से
लटकने के लिए..
क्योंकि,
मैं किसान हूं।।
वाह रे मानव!
वाह रे नेता!
वाह रे लालच!
वाह रे देश!
जय हो राजनीति की,
जय हो
नेताओ के स्वार्थ की।।
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
एक किसान की वेदना, बेहद उम्दा रचना ।