भंवर जाल

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बनाकर आशियाना अपनी मोहब्बत का,
क्यों तुम गिरा रहे हो।
जमाने के डर से शायद,
तुम भाग रहे हो।
और लोगो के भवर जाल में,
तुम फस गये हो।
और अपनी मोहब्बत का,
जनाजा खुद निकल रहे हो।।

ये दुनियाँ बहुत जालिम है,
जिसने न छोड़ा राम सीता को।
जुदा करवा दिया था,
उस समय राम सीता को।
यही क्रम आज भी चल रहा है,
इस कलयुगी संसार में।
और मोहब्बत के दुश्मन,
मर देते है प्रेमियों को।।

यदि की है मोहब्बत तो
क्यों जमाने से डरना।
जो दिल कहता है हमारा,
वही अब आगे है करना।
और अपनी मोहब्बत को,
अमर कर के जाएंगे।
और लोगों के भंवरजाल को,
तोड़कर हम दिखलायेंगे।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)

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