गरीबों का लक अनलॉक कैसे होता है साहब …!!

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tarkesh ojha
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कोरोना काल में दुनिया वाकई काफी बदल गई . लॉक डाउन अब अन लॉक की ओर अग्रसर है , लेकिन इस दुनिया में एक दुनिया ऐसी भी है , जो लॉक डाउन और अनलॉक का कायदे से मतलब नहीं जानती . उसे बस इतना पता है कि लगातार बंदी से उसके जीवन की दुश्वारियां बहुत ज्यादा बढ़ गई है . इस बीमारी से उपजे हालात ने उन्हें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है , जहां से निकलने का कोई रास्ता फिलहाल उन्हें नहीं सूझ रहा . सबसे बड़ी चुनौती जीविकोपार्जन की है . अपने आस पास नजर दौड़ाने पर हमें ऐसे ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे , काल क्रम में जिनका छोटा – मोटा रोजगार भी छिन गया .करीब तीन साल तक माओवादियों की गिरफ्त में छटपटाने वाले जंगल महल का हाल भी कुछ ऐसा ही है . वनोपज के सहारे पेट भरने वाले स्थानीय ग्रामीणों की माली हालत लॉक डाउन से बेहद बिगड़ चुकी है . बता दें कि इस दुर्गम वन क्षेत्र के ज्यादातर लोगों का पेट जंगल में मिलने वाले शाल पत्तों से दोना पत्तल बना कर चलता है . झाड़ग्राम जिला अंतर्गत नया ग्राम के तपोवन स्थित मंदिर में पुजारी का कार्य करने वाले काशीनाथ दास ने कहा कि कोरोना संकट के साथ ही यह कार्य लगभग ठप है . ग्रामीण सुबह उठ कर पत्ते चुनने जंगल जाते हैं . दोपहर लौट कर वे चुने गए पत्तलों को दो को एक में मिला कर सिलने का काम करते हैं . फिर एक – एक हजार के बंडल बना कर उन्हें बेचते हैं . इससे पहले एक ग्रामीण परिवार को रोज औसतन दो सौ रुपये की आय हो जाती थी , लेकिन लॉक डाउन के बाद से मांग न के बराबर रह जाने से वे अपने उत्पाद औने – पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं . वैसे भी इन पत्तलों का उपयोग ज्यादातर सामाजिक समारोह और शादी – उत्सव में होता है . जो लॉक डाउन के चलते बंद है . इन पत्तलों की पड़ोसी राज्य ओड़िशा में भारी मांग है . लेकिन कोरोना काल में आवागमन ठप रहने से ग्रामीणों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा . इस परिस्थिति में आदिवासियों की रोजी – रोटी पर बुरा असर पड़ा है . ऐसे में स्थानीय लोगों की खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है . कोरोना , लॉक डाउन या अन लॉक का प्रसंग छिड़ने पर मानों वे पूछ रहे हों ….गरीबों का लक अनलॉक कैसे होता है साहब ….!! झाड़ग्राम जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुब्रत भट्टाचार्य कहते हैं कि केवल दोना पत्तल ही नहीं बल्कि पिछले कुछ महीनों में जंगल महल में बीड़ी के लिए तोड़े जाने वाले तेंदु पत्ते की तुड़ाई का कार्य भी बुरी तरह से बाधित है , इसका भी बुरा असर स्थानीय आबादी की रोजी – रोटी पर पड़ा है .

# तारकेश कुमार ओझा

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।