काश! मैं इस नीरव आकाश तले
स्वतंत्र विचरण कर पाती
काश! यह निर्बाध समीर
मेरी देह को मृत्युंजयी स्पर्श दे पाता
काश! रात्रि की गोद में बैठ
गंगा लहरियों की स्वच्छंद जलक्रीड़ाएं
महसूस कर पाती
काश! चांद की चंचल चंद्रिकाएं
मेरे कपोलों से मनोनुकूल खेल पाती
काश! आकाश का शीतल मोती
मेरे मन को भी रोमांचक छुवन से भिगो पाता
काश! तिमिर- चांदनी की लुका- छिपी
वृक्षों के झुरमुट से पकड़ पाती
काश! ऊर्जावान ऊषा की लालिमा से
स्याह- सफेद जीवन को रंगीन बना पाती
काश! हवाओं – सा अधिकार मुझे भी होता
कि कैद जिन्दगी को इच्छित मोड़ दे पाती
काश! यह ‘ काश’ शब्द
हमारे जीवन से अतल खोह में विलीन हो जाता
किसमत्ती चौरसिया ‘स्नेहा’
आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)