खुद को भूला हूँ तुमको पाने में,
हर्ज़ क्या दिल से दिल मिलाने में।
मेरे दिल की कली महक उठी,
तुम जो आए गरीबखाने में ।
मेरे महबूब लौटकर आजा,
बिन तेरे कुछ नहीं जमाने में।
कट रहीं बिन तुम्हारे ये घड़ियाँ
तेरी यादों के आशियाने में।
है सितम क्या ये जान लो ‘पंकज’
है मज़ा कितना ग़म उठाने में।
#पंकज सिद्धार्थ
परिचय : पंकज सिद्धार्थ नौगढ़ सिद्धार्थनगर (उत्तर प्रदेश )से ताल्लुक रखते हैं,यानि गौतम बुद्ध की भूमि से।आपने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर हिन्दी से किया है और बीएड जारी है।आप कविता को जीवन की आलोचना शौक मानकर अच्छी रचना लिखते हैं।
बहूत अच्छा लगा बधाई