सृजन, चयन, लेखन के मौलिक गुणों के साथ संसार में स्त्री को सृजक के साथ-साथ कुशल नेतृत्वकर्ता भी माना जाता है, और स्त्री उस दायित्व में भी अपनी अदद पहचान के साथ समाज का गौरव बनकर उभरीभी है, ऐसे सैंकड़ो उदाहरण हमारे सामने उपलब्ध हैं।
एक स्त्री को सृजन और वात्सल्य का समन्वय माना जाता है। स्त्री का दायित्व केवल यह ही नहीं होता कि घर को संभाले, चूल्हे-चौके, बच्चे, परिवार तक की चार दीवारी में सीमित रहे बल्कि उसके बाहर भी उसके सपनों का आकाश होता है। इसी बात को सिद्ध किया है महिला सशक्तिकरण और सक्षमीकरण की आवाज़ बन कर उभरी इंदौरी नायिका शिखा जैन ने। जिसका जुनून ही उसके समाज में होने की पहचान है, जो हर समय ज़रूरतमंदों के साथ हो कर हिन्दी भाषा की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापना के लिए सतत संघर्षरत है और जिसने व्यवसाय और मुसीबत के दौर में भी अपने सिद्धांतों का साथ नहीं छोड़ा।
हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में रहने वाली और हिन्दी साहित्य जगत की सेवा में कदम रखते हुए साहित्य पत्रिका साहित्य ग्राम की संपादक और प्रकाशक बनीं शिखा जैन की।
चार सितम्बर को पिता शरद ओस्तवाल और माता राजेश्वरी के घर जन्मी शिखा अपने माता-पिता की दो संतान में सबसे बड़ी हैं। इनका एक छोटा भाई भी है।
शिखा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन जिले की खाचरौद तहसील में विक्रम विश्वविद्यालय के अंतर्गत शासकीय महाविद्यालय से बी. कॉम. स्नातक, उसके बाद एम. कॉम स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की।
शिखा का विवाह डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ के साथ हुआ। डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रतिष्ठित साहित्यकार, पत्रकार, संपादक और सेन्स समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी होने के साथ-साथ कई सम्मान से सम्मानित हिन्दी के प्रचारक हैं।
शिखा ने विवाह के उपरांत अपने सपनों को पंख देने के उद्देश्य से घर की दहलीज़ के बाहर पहली बार एक संस्थान में नौकरी करने के लिए कदम निकाला। उसके बाद पति के व्यवसाय में सहभागी बनने लग गई। धीरे-धीरे पति के रुझान के साथ कदमताल करते हुए शिखा स्वयं भी हिन्दी सेवा के मैदान में उतर गईं। और मातृभाषा उन्नयन संस्थान के नारे ‘हिन्दी के सम्मान में हर भारतीय मैदान में’ को आत्मसात करते हुए मातृभाषा.कॉम, हिंदीग्राम का संचालन आरंभ किया, साथ ही स्त्री सम्मान और आधी आबादी की गूंज को मुखर करने के उद्देश्य से ‘वुमन आवाज़’ की स्थापना की।
वुमन आवाज़ के माध्यम से शिखा ने सबसे पहले स्त्री शक्ति के एकत्रीकरण का कार्य किया। 9 मार्च 2018 को महिला दिवस के दिन अपने संपादन में वुमन आवाज़ साझा संग्रह प्रकाशित किया, साथ ही पचास से ज़्यादा किताबों का प्रकाशन भी किया गया।
इसके बाद लगातार हिन्दी सेवा में तत्पर रहने वाली शिखा ने हिंदी भाषा के गौरव की स्थापना के लिए स्वयं को राष्ट्रसेवा के हवन में झोंक दिया। यहाँ से फिर एक नई राह खुली, जो संपादन के साथ-साथ स्वयं के प्रकाशन के रूप में सामने आई। फिर एक प्रकाशन आरम्भ करने का संकल्प लिया जिसे फरवरी 2019 को मूर्त रूप संस्मय प्रकाशन के रूप में मिला। इस प्रकाशन का उद्देश्य हिन्दी साहित्य को कम से कम मूल्य पर एवं संचार माध्यमों एवं नई तकनीकियों के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु आंदोलन में सक्रिय सहभागिता करना रहा।
शिखा आज कई संस्थाओं जैसे मातृभाषा उन्नयन संस्थान में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, हिन्दी ग्राम में सह संस्थापक, मातृभाषा.कॉम में सह संस्थापक, साहित्यकार कोश में सह संस्थापक तथा सेन्स समूह में बतौर निदेशक व वुमन्स प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश में कोषाध्यक्ष जैसे शीर्ष दायित्व का निर्वहन कर रही हैं। इन सब के साथ–साथ कई साहित्यिक और ग़ैर-साहित्यिक संस्थानों में विभिन्न दायित्वों पर सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
शिखा छोटे से शहर से निकल कर बड़ी सोच के साथ वर्तमान में भी लगातार देश में कई भाषाई आन्दोलनों और संस्थानों में सक्रिय हैं। इस युवा उद्यमी के पास युवाओं के लिए सलाह है कि “ख़ामोशी से की गई मेहनत कभी ख़राब नहीं होती, ज़िम्मेदारी के साथ-साथ विश्वास के बीजों को रोपते हुए आगे बढ़ें।”
वर्तमान में शिखा जैन संस्मय प्रकाशन के माध्यम से कई बेस्ट सेलर पुस्तकों का प्रकाशन कर चुकी हैं और यह यात्रा अनवरत जारी है। इसी तरह शिखा जैन समाज सेवा के क्षेत्र में भी लगातार कार्यरत हैं। कोरोना काल में समाजसेवा के सैंकड़ो कार्य कर हज़ारों ज़रूरतमंदों की सहायता करने में भी शिखा अव्वल रहीं।
हिन्दी के लेखन-चिंतन कार्यों के साथ-साथ प्रकाशन और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में भी महिलाओं की भूमिका गणनीय है। इसी तरह यदि आधी आबादी का दख़ल निरन्तर आंदोलनधर्मी क्षेत्रों में बढ़ता है तो निश्चित तौर पर यह देश और समाज के उत्थान के लिए मिसाल कायम करेगा।