तुमसे क्यों इतनी
नजदीकियां हैं,
नहीं जानती..।
नहीं जानती,
क्यों तुम अच्छे
और अच्छे
लगते हो..।
पता नहीं, ये भी
कि कितना,
चाहती हूँ..
मगर जबसे
मिली हूँ तुमसे,
बस तुम्हारी
तुम्हारी ही
खुशियों की
खुदा से
दुआ मांगती हूँ।
शायद कभी
में न रहूँ,
मगर तुम्हारे
भीतर रहूंगी।
जब हो जाओगे
कभी हताश,
धड़कनों को
सम्भाल लूंगी।
बूंदे स्वेद की,
माथे पर से
तुम्हारी अंगुलियां
पोंछेंगी,
मगर प्रिय..
स्पर्श मेरा होगा।
हाथ पकड़कर
चलती रहूंगी,
तब तक
जब तक,
तुम पा न लो
अपना अभीष्ट..
तभी..तभी,
मोक्ष मेरा होगा।
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
मन को छूने वाली कविता,सहज ही अन्तर मन को छू गई।पूर्व में भी आपकी कविताएं पढने का अवसर मिला,मन की गहराईयों से लिखती हैं आप।