क्या लोगों की सेवा करने से मिलती है शान्ति और संतुष्टि?

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  आपके द्वारा पूछे प्रश्नों से ऐसा लगता है कि आप मेरी दुखती रग को झिंझोड़ रहे हैं।

क्योंकि सत्य के आधार पर उनके उत्तर देना नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित हैं।
चूंकि लोगों की सेवा का अर्थ मानव सेवा से है।जिसे मुझ से श्रेष्ठ कोई क्या अनुभव करेगा?क्योंकि मैंने हमेशा मानव जाति का भला सोचा और मेरी उस सोच को मेरे विभागीय अधिकारियों से लेकर घर-परिवार मुहल्ले वालों की मानव जाति ने ‘सम्पूर्ण पागल’ की संज्ञा दी।जिससे उक्त कहावत ‘नेकी कर और दरिया में फैंक’ अर्थात ‘नेकी कर और जूते खा मैंने खाए तू भी खा’ चरितार्थ हुई।
माता के जगराते हों या समाजसेवा के बड़े-बड़े मंच हों,उनके पीछे का सच धन ऐंठने के सिवाए कुछ नहीं हैं।चूंकि मेरा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सामाजिक सेवा संगठनों से पाला पड़ा हुआ है।जैसे मानव सेवा के नाम पर स्कूली बच्चों से लेकर विश्व स्तर पर रैड-क्रास संगठन ठग रहा है।किंतु उक्त संगठन ने अथक प्रयास के बावजूद आंतड़यों की तपेदिक के उपचार हेतु मुझे मात्र 20 रिफैंपिसिन केपसूल ही देकर मरने के लिए छोड़ दिया था।विश्व स्वास्थ्य संगठन की बात करूं तो उन्होंने भी क्षमा मांगते हुए बताया था कि वह मात्र देशों को ही धन देते हैं।उनका कहना था कि अकेले बिमार को सहायता देना उनकी पालिसी में नहीं है।उन्होंने यह भी बताया था कि वह तपेदिक उपचार हेतु मेरे राष्ट्र ‘भारत’ को धन दे चुके हैं।किंतु मुझे तपेदिक रोधी दवाईयां लेने के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़ी थी।परंतु उसके बावजूद उपचार तभी संभव हुआ जब मैं बिमारी की स्थिति में ही नौकरी पर उपस्थित हुआ था।
सत्य तो यह भी है कि जब से मैंने मानव सेवा से तौबा कर ली है, तब से मुझे सुकून मिल रहा है और लेखन कार्य में अपना समय बर्बाद कर रहा हूँ।जिसमें पुस्तकें नि:शुल्क बांटने की कुप्रथा संपन्न लेखकों ने चला रखी है।हिंदी सेवाकार संगठन भी कुछ समय पश्चात धन मांग कर कष्ट देते हैं।हालांकि पांचों उंगलिया एक जैसी नहीं होतीं।इसलिए कलम चल रही है और कलम के सहारे सांसें चल रही हैं।सम्माननीयों
#इंदु भूषण बाली

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।