तुम्हारे ही लिए प्रियतम जहां को छोड़ आई थी,
मधुर क्रंदन बो मां चंदन का आंचल छोड़ा ही थी,
मेरे बाबा ने यू मुझको था सीचा अपनी बगिया में,
खिली जो फूल बन के तो तेरे चरणों चढ़ाई थी,
मेरे नन्हे से भाई ने बिठा डोली उठाई थी,
लरजते उन लबो की भी हंसी को तोड़ आई थी,
स्वयं गंगा उतरती थी, थी जब मैं खिलखिलाती थी,
चहक चिड़िया सी मैं प्रियतम धार वह मोड़ आई थी,
बो सावन झूले संग सखियां बिलखते नैन अब अखियां,
भूल उन रिश्ते नातों को तेरे संग जोड़ आई थी,
#पूजा विश्वकर्मा ‘बिट्टू’
नरसिंहपुर( मध्य प्रदेश)