व्यक्तित्व और कृतित्व में काया प्रवेश है ‘अर्थ तलाशते शब्द’

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पुस्तक समीक्षा

पुस्तक- अर्थ तलाशते शब्द
विधा- साक्षात्कार संकलन
संपादक- श्री राकेश शर्मा,
(संपादक, वीणा मासिक पत्रिका)
प्रकाशन- बिम्ब-प्रतिबिम्ब प्रकाशन, फगवाड़ा (पंजाब)
मूल्य- मात्र 320रु (198 पृष्ठ)

किसी विद्वान के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी या अध्ययन उनके साथ रहकर किया जा सकता है, कृतित्व का रेखांकन अथवा अध्ययन उनके लेखन को पढ़ कर किया जा सकता है, किन्तु सर्व आयामी अध्ययन और मूल्यांकन के लिए उस विद्वान की देह में प्रवेश किया जाना उचित मार्ग है। देह प्रवेश उनकी लेखनी के माध्यम से सुगमता से हो सकता है। इसी तरह जब श्री राकेश शर्मा जी के संपादन में देश के अलग-अलग विद्वत्ता वाले सुधीजनों द्वारा उन्हीं से लिए गए 14 साक्षात्कारों के संकलन ‘अर्थ तलाशते शब्द’ को पढ़ा तो यह पाया कि परकाया प्रवेश का एक सुगम मार्ग इन साक्षात्कारों का समग्र अध्ययन और पाठन भी है।
सर्जना की कसौटी पर तमाम लेखनीय कर्म आता है किन्तु मानव के भीतर की मनुष्यता का परिचय विद्वान की वाणी, भाषा और उनकी जीवनशैली से मिलता है। इसी तरह इस पुस्तक में मौजूद साक्षात्कार एक शोधपूर्ण दस्तावेज़ है, जिसकी भूमिका डॉ. श्यामसुंदर दुबे ने लिखी है। वह स्पष्ट उल्लेखित भी करते हैं कि ’साक्षात्कार कृति जड़ता से ग्रसित नहीं है।’ साथ ही, वह लिखते हैं कि ‘राकेश जी ‘वीणा’ को गढ़ रहे हैं और ‘वीणा’ उन्हें।’
पुस्तक में खुले मन से उत्तरित साक्षात्कार राकेश जी के अंत:पृष्ठों को उकेरने का महनीय कार्य सहजता से कर रहे हैं। पहला साक्षात्कार साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे जी ने लिया, जिसमें राकेश जी की मानस पर प्रगाढ़ आस्था व कर्म सत्ता की अधीनता का स्पष्टीकरण होता है। दूसरा साक्षत्कार गाज़ियाबाद के विद्वान डॉ. सत्यप्रिय पाण्डेय ने लिया जिसमें ‘लोक’ के आलोक में राकेश शर्मा का मूल्यांकन दर्शनीय है। तीसरा साक्षात्कार इन्दौर से प्रकाशित देवपुत्र के संपादक गोपाल माहेश्वरी ने लिया, इस साक्षात्कार में सर्जना के विविध आयामों पर राकेश जी की दृष्टि, भाषा की चिंता, संपादन की चुनौतियों के आँकलन सहित साहित्य में हो रही खेमेबाज़ी के लिए विरोध का स्वर दिखाई देता है। पुस्तक में प्रस्तुत चतुर्थ साक्षात्कार राँची की विदुषी सत्या शर्मा कीर्ति ने लिया है, जिसका शीर्षक ‘शिविरबद्ध आलोचकों ने हिन्दी साहित्य को बहुत हानि पहुँचाई है’ लुभावन और अर्थपूर्ण है। पूरा साक्षात्कार आलोचना और आलोचक राकेश शर्मा से भेंट करवाता है, इस साक्षात्कार में राकेश जी स्पष्ट रूप से रामविलास जी के समर्थक भी नज़र आते हैं। पाँचवा साक्षात्कार झाँसी निवासी डॉ. निधि अग्रवाल ने लिया है, जो गहन चिंतन व मनन से परिपूर्ण साक्षात्कार है।राकेश जी की भाषा समष्टि का सायास ही दर्शन हो जाता है।
पुस्तक का अगला साक्षात्कार हैदराबाद के गोरखनाथ तिवारी ने लिया है, जो राकेश शर्मा जी की पत्रकारिता और ‘वीणा’ की यात्रा पर केंद्रित है।
सातवाँ साक्षात्कार फ़र्रुखाबाद के उत्कर्ष अग्निहोत्री द्वारा लिया गया है, जो साक्षात्कार विधा की पड़ताल ही है। महावीर प्रसाद द्विवेदी की संपादन परम्परा का ज़िक्र है, जो यथार्थवादी दृष्टिकोण पैदा करता है।
अगला साक्षात्कार इंदौर की डॉ. शोभा जैन ने लिया है, जिसमें राकेश शर्मा जी लेखकों को किसी विचारधारा का कठमुल्ला बने रहने से रोकते हैं। रचनाकर्म समाज उपयोगी कैसे हो? विमर्श कैसे स्थापित हो? अफ़वाहों से कैसे पृथक रहा जाए? ऐसे तमाम विषयों को छूता यह साक्षात्कार बहुत बढ़िया है। आलोचकों में क्या ख़ास बात होनी चाहिए इस पर राकेश जी ध्यानाकर्षित करते हैं। नौवां साक्षात्कार कटक ओडिसा के विद्वान डॉ. अभिषेक शर्मा ने लिया है, जिसके माध्यम से राकेश शर्मा जी के ‘मानस निलयम्’ में सहर्ष प्रवेश मिलता है यानी निजी जीवन और दृष्टिकोण का दर्शन होता है। इसमें राकेश जी एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि ‘साठ की उम्र चूक जाने की उम्र नहीं है, बल्कि समाज को बहुत कुछ देने की उम्र है।’ इस गहरी बात पर हमारे वरिष्ठजनों को भी गम्भीरता से सोचना चाहिए कि कहीं उम्र की रेत फिसलती न रह जाए, सर्जना के साथ-साथ नई पीढ़ी का मार्गदर्शन भी करते रहना चाहिए।
पुस्तक में दसवाँ साक्षात्कार इन्दौर की डॉ. वन्दना मालवीय द्वारा लिया साक्षात्कार शामिल है। अगला साक्षात्कार वरिष्ठ लघुकथाकार सतीश राठी जी ने लिया है। यह मूलतः राकेश जी के जीवन पर केन्द्रित साक्षात्कार है। अगला साक्षात्कार ग्वालियर की विदुषी अलका शर्मा ने लिया है, जो राकेश जी के अपने देवता, साहित्यिक देवताओं के बारे में जानने-समझने की संभावनाओं से भरा हुआ है। रामविलास जी के भारतीय सन्दर्भ में मार्क्सवादी का दर्शन है।
तेरहवाँ साक्षात्कार ओडिसा की पिंकी एक्का ने लिया है, जो स्त्री–विमर्श की तह खोलने वाला बेबाक साक्षात्कार है। बेहद संजीदा और नवउन्मेषी साक्षात्कार है। इसके बाद इंदौर की डॉ. वसुधा गाडगीळ द्वारा लिया गया साक्षात्कार है, जिसका शीर्षक ही बहुत गहराई को सामने रख देता है, शीर्षक कहता है कि ‘नई पीढ़ी को आगे बढ़ाना, वरिष्ठ पीढ़ी का दायित्व है’।
निश्चित रूप से यह साक्षात्कार प्रत्येक साहित्यिक जनों को अवश्य पढ़ना चाहिए। समकाल में इसके उलट वरिष्ठ पीढ़ी तो युवाओं की सर्जना से अनायास भय से आक्रान्तित है, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। अंतिम साक्षात्कार बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, जिसमें प्रश्नकर्ता राकेश शर्मा जी का स्वयं का अन्तस है और उत्तर राकेश जी दे रहे हैं। विविध आयामों पर राकेश जी की पड़ताल के रहस्योद्घाटन हैं ये साक्षात्कार। कुल मिलाकर ‘अर्थ तलाशते शब्द’ वाकई में हज़ारों शब्दों की भाव अभिव्यक्ति और उनके अर्थ की खोज है। चिंतन का पाथेय दृष्टिगोचर होता है। सुव्यवस्थित, त्रुटिरहित प्रकाशन और मुद्रण के अतिरिक्त सर्वोत्तम काग़ज़ के प्रयोग से निर्मित इस पुस्तक का मनोहारी आवरण चित्र ईश्वरीय रावल जी द्वारा निर्मित है, जो अनायास ही आकर्षित करता है। महनीय दस्तावेज़ के रूप में तैयार इस पुस्तक को सुधीजनों को अनिवार्यतः पढ़ना चाहिए।

#समीक्षक
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान

पता- 204, अनु अपार्टमेंट, 21-22, शंकर नगर, इंदौर,
मध्य प्रदेश–452018

मो.- 09893877455
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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।