अपराधी थानेदार बने हुये है
बेईमान पत्रकार बने हुये है।
गुंडे बदमाश भी इन दिनों मे
देश की सरकार बने हुये है।
नशे मे धुत रहते है शिक्षक
स्कुल बीयरबार बने हुये है।
महिनो गायब रहते डाक्टर
अस्पताल बेकार बने हुये है।
कविता का कारोबार हो रहा
कवियों के दरबार बने हुये है।
इंसाफ को तरसती है गरीबी
न्यायालय बाजार बने हुये है।
नारी का दुपट्टा छिनने वाले भी
नर्मदा के ठेकेदार बने हुये है।
भाई को भाई से लडाकर वो
एकता का किरदार बने हुये है।
लुट का धंधा करने वाले
देश के ईज्जतदार बने हुये है।
धर्म की आग ओर भडकेगी
घर-घर मे बेकार बने हुये है।
मुल्क तो जाना ही है गर्त मे
शैतान ही सरदार बने हुये है
#संजय अश्क बालाघाटी