राजाओं के राजा, धराधीश राजा भोज

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परमवीर राजा भोज का स्मरण होते ही सत्य, साहस, ज्ञान, कौशल और जलाभिंषेक का बोध होने लगता हैं। सम्यक् कालजयी बनकर भूतो न भविष्यति, राजा भोज यथा दूजा राजा की मीमांसा में राजा-महाराजाओं के देश में राजा भोज राजाओं के राजा कहलाएं। इनके राज में प्रजा को सच्चा न्याय और जीने का वाजिब हक मिला। ऐसे महाप्रतापी शूरवीर राजा भोज का जन्म बसंत पंचमी को संवत् 1037 में उज्जैन के परमार (पंवार) राजवंश में हुआ। उनके पिता सिंधुराज तथा माता महारानी सावित्री देवी थी। पत्नि महारानी लीलावती उन्हीं की तरह बहुत बडी विदुषी थी। उज्जैन, धार के परमार (पंवार) कुल के 24 राजाओं में वे नौवे राजा कहलाए जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुए।

 अराध्य के शौर्य व ऐश्वर्य का अमर गुंजार युगिन पंवारों के मन-मन और जन-गन को मंत्रमुग्ध, संस्कारित तथा आत्मकेद्रिंत करेंगा। यथार्थ, पंवार राज वंशी राजा भोज का राजकाल 1000 से 1055 तक था। उन्होंने अपनी राजधानी उज्जैन से धार स्थांतरित की थी। राजा भोज पहले राजा हुए जिन्होंने भारतीय समाज को संगठित कर बाहरी हमलों का सामना किया। वे हिन्दु धर्म के संरक्षक थे। एक योद्धा की भांति हिन्दु धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्त्र हुंकार भरी। उन्होंने सोमनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम् आदि मंदिरों का नवनिर्माण कर धर्मपीठों को सशक्त बनाया था। उनकी मृत्यु 13 संवत् 1112 को हुई। पंवार वंश का पताका लहराकर धराधीश राजा भोज दैदिप्यमान आदर्श हिन्दु सम्राट के रूप में भारतीय इतिहास में अमर हो गए।
अमर गाथा का परचम यही नहीं थमता बल्कि आगे तीव्र गति से आगे बढता हैं। लिहाजा, चक्रवर्ती सम्राट राजा भोज मध्ययुगीन भारत के इतिहास में सम्राट अशोक तथा विक्रमादित्य के समान कुशल शासक, विद्वान कवि, दानी, ज्ञानी, त्यागी, धार्मिक, सदाचारी थे। साथ ही ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य के ज्ञाता होने के अलावा लोक सुख-समुद्धि के वास्ते सदैव तत्पर सुरक्षा दक्ष प्रजा में अगाध लोकप्रिय अद्वितीय चक्रवर्ती राजा हुए। 

प्रत्युत, राजा भोज महान व्यक्तित्व से विभूषि‍त थे। उन्हें माहधिराज परमेश्वर, सार्वभौम आदि उपाधियों से अलंकृत किया गया था। उनका राज उत्तर में हिमालय से दक्षिण में मलय तक व पूर्व में बंगाल से पश्चिाम में गुजरात तक था। राजा भोज सभी प्रकार के शस्त्र तथा शास्त्रों में निपुण थे। उन्होंने संस्कृत और प्राकृत भाषा में 84 ग्रंथ लिखे। यथा धर्म, खगोल विद्या, कला, वास्तुकला, भवननिर्माण, काव्य और औषधी शास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी जो अभी भी विधमान हैं।

 स्तुत्य, राजा भोज ने बहुत से युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की जिससे सिद्ध होता है कि, उनमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उनके जीवन का अधिकांश समय युद्धक्षेत्र में बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने नहीं दी। उन्होंने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत से मंदिर और जलाशय बनवाए। गोया उनमें से अब तक बहुत कम का ही पता चल पाया। ऐसे विविध युगीन, विविध नृपों में उपलब्ध होनेवाले गुणों का समाहार किए हुए राजा भोज भारतीय संस्कृति के प्रतीक और अनमोल धरोहर बन गए।
यथेष्ट, वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था। तब उसका नाम भोजपाल नगर था। जो कि कालांतर में भूपाल और फिर भोपाल हो गया अब, भोजपाल करने की पूरजोर कोशि‍श जारी है, देखना यह कब सराबोर होती है। राजा भोज ने भोजपाल नगर के पास ही एक समुद्र के समान विशाल तालाब का निर्माण कराया था। जो पूर्व और दक्षिण में भोजपुर मे विशाल शि‍त मंदिर तक जाता था। आज भी भोजपुर जाते समय रास्तें में शि‍वमंदिर के पास उस तालाब.की पत्थरों की बनी विशाल पाल दिखाई पडती हैं। सम्यक् उस तालाब के पानी को बहुत पवित्र और बीमारियों को ठीक करने वाला माना जाता था। 

गौरतलब हो कि राजा भोज को चर्म रोग हो गया था तब किसी ऋषि या वैद्य ने उन्हें इस तालाब के पानी में स्नान करने और उसे पीने की सलाह दी थी। जिससे उनका चर्मरोग ठीक हो गया था। चरिकाल से ही राजा भोज ने जल बचाओं का शंखनाद किया था जो आज भी कालजयी बना हुआ है। इसी मायनों में इन्हें जलदूत कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
अभिभूत, अलोकिक ज्ञानपुंज और पराक्रम से सराबोर दानवीर राजा भोज के जीवन का प्रत्येक अंश भूतो न भविष्यति, राजा भोज यथा दूजा राजा का भावार्थ परिलच्छित करता है। सोदेश्ता परमवीर कहें या राजवीर, दानवीर, महावीर, ज्ञानवीर, धर्मवीर, कर्मवीर और नीरधीर राजा भोज की अमर गुंजार अंतस में अजर यशोगीत रहेंगी। हृदयंगम जन-जन के मन-मन में महाराजा के कण-कण और क्षण-क्षण जीवन प्रसंग का आत्मसात पग-पग में कर्मपथीय रहेगा।

हेमेन्द्र क्षीरसागर,

पत्रकार, लेखक व विचारक

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