पहाड़ पर युवाओं ने निकाला जल संकट का समाधान, चाल खाल बनाकर की पानी की स्टोरेज

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gopal narsan
असम्भव कुछ भी नही यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो,पहाड़ पर पानी रोकने की बात सोचना ही कठिन बात है लेकिन यदि इसे साकार कर दिया जाए तो क्या ही कहने,जी हां पहाड़ के कुछ युवाओं ने पहाड़ पर वर्षा या फिर बहकर आ रहे पानी को रोकने के लिए एक ऐसी चाल खाल पहाड़ पर बनाने में कामयाबी हासिल कर ली,जो जल संरक्षण की दिशा में वरदान सिद्ध हो सकती है।उत्तराखंड के पौड़ी जिले में युवाओं ने पानी को बचाने की खुद कमान संभाली और पहाड़ पर चाल-खाल बना कर पानी इकट्ठा करने में कामयाबी प्राप्त की है।पहाड़ पर पानी की कमी के चलते और बेरोजगारी की समस्या से आहत होकर
पलायन की मार झेल रहा उत्तराखंड का पौड़ी जिला अब स्वयं अपने युवाओं के भरोसे उठकर खडा हो रहा है। पहाड़ के इन  युवाओं अपने इलाके के हिस्से में आऩे वाले बारिश के पानी को सहेज कर चाल खाल का निर्माण करके पानी की स्टोरेज शुरू कर दी है।यदि ऐसा पहले हो गया होता तो शायद लोग अपने गांव-घर छोड़कर शहरों की ओर  नहीं भागते। पौड़ी में पानी की समस्या इतनी बड़ी है कि लोग सिंचाई न कर पाने की सूरत में खेती-बाड़ी छोड़ रहे हैं, जिससे यहां बंजर जमीन का दायरा बढ़ता जा रहा है।
पौड़ी के मझगांव के प्रगतिशील युवा सुधीर सुंद्रियाल ने पिछले वर्ष कुछ युवाओं की मदद से एक खाल-चाल बनाई। खाल-चाल को बनाने के लिए ऐसी जगह चुनी गई, जहां पहाड़ों की ढलान से बहकर पानी इकट्ठा हो सकता है। दूसरे क्षेत्रों से भी यहां पानी लाने के लिए नालियां बनाई गईं। खाल-चाल के जरिये पानी को बटोरने का उनका ये प्रयोग सफल रहा। उसके बाद गांव के अन्य लोगों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया और उनका सहयोग करना शुरू कर दिया।तभी तो इस वर्ष भी सुधीर कुछ अन्य युवा किसानों के साथ मिलकर छोटे-छोटे खाल-चाल बना रहे हैं। देवराजखाल गांव, पांथर गांव, यमकेश्वर ब्लॉक में बारिशों के दौर के साथ ही ये खाल-चाल पानी एकत्र करने का कार्य शुरू कर देंगे। इस होनहार युवा
सुधीर के ही गांव में ग्रामसभा की ओर से मनरेगा के तहत पिछले वर्ष दो खाल-चाल बनवाए गए। वे बताते हैं कि उन जलाशयों को बनाने के लिए स्थान का चयन सही तरीके से नहीं किया गया। उलटा इस बात की ओर ध्यान दिया गया कि कहां से पत्थर आसानी से मिल जाएंगे। एक खाल-चाल को बनाने में कम से कम एक लाख रुपये खर्च हुए होंगे और वे पूरी तरह अनुपयोगी साबित हुए। इसमें सिर्फ बारिश के ज़रिये ही पानी इकट्ठा हो सकता है। पहाड़ों की ढलान से उतरता हुआ पानी यहां लाने का कोई ज़रिया नहीं बन पाया है।
पौड़ी में ऊंचाई पर बसे गांवों में पानी का संकट साल-दर-साल गहरा रहा है। जबकि नीचे बसे गांवों में फिर भी थोड़ा बहुत पानी है।  जिले के यमकेश्वर ब्लॉक, गुमखाल, लैंसडौन, जयहरीखाल, पौड़ी नगर में पानी की समस्या विकट है। इसके बावजूद वर्षा जल संचय के लिए यहां अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। हालांकि राज्य सरकार द्वारा मंत्री आवासों में जरूर रेन वाटर हार्वेस्टिंग की प्रणाली का इस्तेमाल किया गया है।  यदि सरकारी इमारतों, आवासों, विद्यालयों और अस्पतालों में ही बारिश के जल को बचाने के प्रबंध कर दिये जाएं तो हमारी समस्या का एक बड़ा हिस्सा हल हो सकता है।
पौड़ी जिले के ज्यादातर प्राकृतिक जल स्रोत सूख चुके हैं। जो थोड़े बहुत बचे हुए वाटर स्प्रिंग्स हैं, उनमें भी अप्रैल-मई में बिलकुल पानी नहीं होता। बारिश के बाद वे थोड़ा रिचार्ज हो जाते हैं।
वर्षा जल संग्रह के लिए उत्तराखंड, हिमाचल और पूर्वोंत्तर के राज्यों में कार्य कर रही संस्था पीपुल्स फॉर साइंस इंस्टीट्यूट के एक पदाधिकारी रवि चोपड़ा बताते हैं कि पौड़ी पहले ही रेन शैडो डिस्ट्रिक्ट कहलाता है। यहां औसत वर्षा ही कम होती है। फिर चीड़ के जंगल भी पानी को रोकने में अधिक सक्षम नहीं हैं। हालांकि पौड़ी में चीड़ के साथ बांज-बुरांश के जंगल भी हैं। लेकिन पिछले वर्षों में चीड़ का प्लांटेशन ही अधिक किया गया। जबकि बांज की तुलना में चीड़ 60 से 70 फीसदी कम पानी अपनी जड़ों में समेटता है। इसलिए भी राज्य में भूजल स्तर में कमी आई है। वे कहते हैं कि जल संरक्षण के नाम पर यहां जो कुछ भी प्रयास सरकार की ओर से किये गये हैं, वे कागजों में ही हुए हैं। जहां पानी की दिक्कत होती है, वहां हैंडपंप लगा दिये जाते हैं, जो तीन-चार महीने बाद पानी देना बंद कर देते हैं।
 वर्ष 2009 में राज्य में पानी के स्रोतों को लेकर सर्वे किया गया था। उसके बाद आज तक कोई सर्वे नहीं हुआ। न ही पानी बचाने के लिए पौड़ी में सरकार की ओर से कोई उल्लेखनीय कार्य किया गया। हालांकि 29 जून 2019 को पौड़ी में किये गये कैबिनेट बैठक के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ल्वाली झील के निर्माण के लिए दो करोड़ रुपये की राशि जारी किये जाने की घोषणा की है।
वर्ष 2010 से 2015 में बारिश के आंकड़ों के अनुसार प्रति वर्ष औसतन 1133.92 मिलीमीटर बारिश होती है। गर्मियों के कुछ महीनों को छोड़ दें तो 90 फीसदी तक बारिश के पानी को इकट्ठा किया जा सकता है।  यदि 100 वर्ग मीटर की छत पर 20 किलो लीटर भंडारण क्षमता वाले टैंक को वर्षा जल संचय के लिए इस्तेमाल करें। जिसमें से  प्रतिदिन अपने इस्तेमाल के लिए 150 लीटर तक पानी खर्च करेंगे तो भी जुलाई के महीने में 31.31 किलोलीटर पानी की बचत कर सकते हैं। अगस्त में पानी की ये बचत 51.14 किलो लीटर तक हो सकती है। टैंक की क्षमता से अतिरिक्त जल ज़मीन के अंदर जल के स्तर को समृद्ध बनाएगा। इस तरह जल संकट से जूझ रहे पौड़ी जैसे अन्य जिलों में भी  पानी की कमी को दूर करने का सपना पूरा किया जा सकता है।
वैसे साल भर होने वाली बारिश का मात्र तीन फीसदी जल संग्रह करने पर राज्य में पेयजल, सिंचाई और औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। लेकिन  ज्यादातर पानी पर्वतीय ढलानों से बहकर मैदानों में चला जाता है।  जंगल की आग, बंजर कृषि भूमि में बढ़ोतरी, सड़कों के निर्माण, खनन और जलस्रोतों के कुप्रबंधन के चलते हिमालय क्षेत्र के प्राकृतिक जल स्रोतों का बहाव कम हो रहा है। जिसकारण पहाड़ में जल संकट हावी है।पौड़ी जैसे अनेक पर्वतीय जिले पानी के कुप्रबंधन की ही मार झेल रहे हैं।जिनके लिए चाल खाल के माध्यम से पहाड़ पर जल संचय की बन गई है।इसके लिए पहाड़ के युवाओं को शाबाशी मिलनी ही चाहिए।
#श्रीगोपाल नारसन
परिचय: गोपाल नारसन की जन्मतिथि-२८ मई १९६४ हैl आपका निवास जनपद हरिद्वार(उत्तराखंड राज्य) स्थित गणेशपुर रुड़की के गीतांजलि विहार में हैl आपने कला व विधि में स्नातक के साथ ही पत्रकारिता की शिक्षा भी ली है,तो डिप्लोमा,विद्या वाचस्पति मानद सहित विद्यासागर मानद भी हासिल है। वकालत आपका व्यवसाय है और राज्य उपभोक्ता आयोग से जुड़े हुए हैंl लेखन के चलते आपकी हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें १२-नया विकास,चैक पोस्ट, मीडिया को फांसी दो,प्रवास और तिनका-तिनका संघर्ष आदि हैंl कुछ किताबें प्रकाशन की प्रक्रिया में हैंl सेवाकार्य में ख़ास तौर से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए २५ वर्ष से उपभोक्ता जागरूकता अभियान जारी है,जिसके तहत विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकरण के शिविरों में निःशुल्क रूप से उपभोक्ता कानून की जानकारी देते हैंl आपने चरित्र निर्माण शिविरों का वर्षों तक संचालन किया है तो,पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के विरूद्ध लेखन के साथ-साथ साक्षरता,शिक्षा व समग्र विकास का चिंतन लेखन भी जारी हैl राज्य स्तर पर मास्टर खिलाड़ी के रुप में पैदल चाल में २००३ में स्वर्ण पदक विजेता,दौड़ में कांस्य पदक तथा नेशनल मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप सहित नेशनल स्वीमिंग चैम्पियनशिप में भी भागीदारी रही है। श्री नारसन को सम्मान के रूप में राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ.आम्बेडकर नेशनल फैलोशिप,प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान के साथ भी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) द्वारा भारत गौरव

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